शिमला, 15 अक्टूबर : हिमाचल प्रदेश को दो मुख्यमंत्री देने वाले कोटखाई व जुब्बल निर्वाचन क्षेत्र का इतिहास काफी पेचीदा रहा है। 1990 में दो धुरंधर आमने-सामने थे। इसके 31 साल बाद इस बार सियासत दिलचस्प है। पहले कभी मुकाबला त्रिकोणीय नहीं हुआ। पहला अवसर है कि जंग त्रिकोणीय है।
1977 में जब समूचे देश में जनता पार्टी की लहर थी, तो उस समय कांग्रेस के दिवंगत मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर चुनाव जीत गए थे। उन्हें 60.19% वोट प्राप्त हुए थे, जबकि देशव्यापी लहर के बावजूद जनता पार्टी के प्रत्याशी पदम सिंह को 31.41% वोट ही हासिल हुए थे।
1990 की बात करें तो इसी निर्वाचन क्षेत्र ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को चुनाव में हार दिखाई थी। बता दे कि दिवंगत वीरभद्र सिंह लंबे राजनीतिक पारी में एकमात्र यही चुनाव हारे थे।
जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे रामलाल ठाकुर ने 51.87% वोट हासिल कर जीत हासिल की थी। जबकि वीरभद्र सिंह को 47.11 मतों पर संतोष करना पड़ा था। बता दें कि 1983 में वीरभद्र सिंह ने इसी हलके से पहला विधानसभा का चुनाव जीता था। उस समय उपचुनाव हुआ था। केंद्र ने दिवंगत रामलाल ठाकुर को हटाकर दिवंगत वीरभद्र सिंह को सीएम बनाया था।
1985 में भी वो इसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीत गए थे। धमाकेदार 84% वोट हासिल करने के बाद वीरभद्र सिंह ने चुनाव जीता था। भाजपा प्रत्याशी 5 फीसदी मतों से भी कम में सिमट गए थे। सीएम पद से हटाने के बाद तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उन्हें आंध्र प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया । इस पद पर रामलाल ठाकुर 15 अगस्त 1983 से 29 अगस्त 1984 तक रहे। आंध्रप्रदेश की सरकार गिराने पर बवाल खड़ा हो गया था बाद इस पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस से नाराज हो कर जनता दल में शामिल हो गए थे।
गौरतलब है कि 1990 में चुनाव हारने के बाद वीरभद्र सिंह ने दोबारा इस हलके से कभी चुनाव नहीं लड़ा था। दिवंगत मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर की पार्टी में वापसी के बाद कांग्रेस ने 1993 के चुनाव में उन्हें ही प्रत्याशी बनाया था, इसी चुनाव में भाजपा के टिकट पर नरेंद्र सिंह ने अपना भाग्य आजमाया था। भाजपा प्रत्याशी ने 15.47% मत प्राप्त किए। 1998 में भाजपा ने टिकट बदलकर सुरेश चौहान को दिया, लेकिन वो 11.85% पर ही सिमट गए। कांग्रेस के रामलाल ठाकुर में एकतरफा जीत हासिल की थी।
2003 में कांग्रेस ने दिवंगत मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर के पोते रोहित ठाकुर को टिकट दे दिया वो 54.22% वोट लेकर पहली बार विधायक बने। बीजेपी ने दोबारा टिकट बदलकर नरेंद्र बरागटा को ही दिया था। वो 1993 की तुलना में डबल से भी अधिक वोट प्राप्त करने में सफल रहे। दिवंगत बरागटा को 2007 के चुनाव में पहली बार विधायक बनने का मौका हासिल हुआ, इसके बाद राजनीति की धुरी रोहित ठाकुर व नरेंद्र बरागटा के आगे-पीछे घूमती रही।
2012 में रोहित चुनाव जीते तो 2017 में बरागटा ने चुनाव जीत लिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस के दो दिग्गजों की कर्मभूमि रहे कोटखाई व जुब्बल में दिवंगत नरेंद्र बरागटा ने ही भाजपा के जड़ों को सींचा था, उनकी बदौलत ही पार्टी कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने में सफल हुई थी।
कुल मिलाकर इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं परिपक्वता काफी मजबूत है। 1977 के बाद के इतिहास पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो वीरभद्र सिंह के हिमाचल की राजनीति में सक्रिय होने के बाद ऐसा मुकाम भी आया था, जब दिवंगत रामलाल ठाकुर को कांग्रेस से किनारा करना पड़ा था, लेकिन चंद बरस में वापस भी लौट आए।
कांग्रेस की विरासत स्वर्गीय राम लाल ठाकुर के परिवार को मिली है, लेकिन भाजपा ने चेतन बरागटा का टिकट काटकर यह विरासत दिवंगत नरेंद्र बरागटा के परिवार को नहीं सौंपी है। ये भी कह सकते है कि 1990 के बाद इस चुनाव में राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है।