सोलन, 14 अक्तूबर : हिमाचल के अर्की विधानसभा का उप चुनाव कई मायनों में अहम है। इसमें दो खास बातें हैं। पहली ये कि दिवंगत वीरभद्र सिंह ने राजनीति में लंबी पारी का अंतिम चुनाव इस हलके से लड़ा था। उनके निधन की सहानुभूति बटोरने के लिए कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को मंडी संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया है।
वहीं दूसरी बात ये है कि सोलन व नाहन से अब तक कोई भी विधानसभा चुनाव न हारने वाले डाॅ. राजीव बिंदल को पार्टी ने चाणक्य के तौर पर चुनाव का जिम्मा सौंपा है। अगर भाजपा हारी तो रणनीतिकार डाॅ. राजीव बिंदल को राजनीतिक झटका लगेगा। अगर जीते तो कद इस कारण बढ़ जाएगा, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन से रिक्त हुई सीट पर भगवा खिला।
1998 के बाद ये पहला मौका है, जब मात्र 3 प्रत्याशी ही चुनाव लड़ रहे हैं। अन्यथा, आंकड़ा लंबा होता था। 2012 में तो संख्या 11 थी।
बता दें कि भाजपा ने गोविंद राम शर्मा को बगावत से रोक कर डैमेज कंट्रोल कर लिया था। उधर, कांग्रेस के प्रत्याशी संजय अवस्थी के सामने उन लोगों को साथ लेकर चलने की चुनौती है, जो उनके टिकट के खिलाफ लामबंद हो गए थे। यहां तक की इस्तीफे भी पार्टी को भेज दिए गए थे। बेशक ही इस निर्वाचन क्षेत्र में गोविंद शर्मा टिकट की वकालत कर रहे थे, लेकिन 2017 के आंकड़े कई बातों को स्पष्ट कर रहे हैं। शायद, ये भी वजह बनी हो कि गोविंद शर्मा की बजाय बीजेपी ने रतन सिंह पाल को टिकट दिया है। दरअसल, 2017 के चुनाव में दिवंगत वीरभद्र सिंह को 53.73 प्रतिशत वोट पड़े थे।
कांग्रेस के दिग्गज नेता के सामने होने के बावजूद भी रतन सिंह पाल ने 44.3 प्रतिशत मत प्राप्त किए थे। नोटा के बटन पर 530 वोट डाले गए थे। इसके अलावा दो निर्दलीय प्रत्याशियों को 734 वोट पड़े थे। चूंकि कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को मंडी से टिकट दिया है, लिहाजा परिवार का पूरा ध्यान वहीं केंद्रित हो गया है। हालांकि कांग्रेस के लिए एक ये बात राहत भरी है कि संजय अवस्थी इस निर्वाचन क्षेत्र में पुराना चेहरा नहीं हैं। 2012 में जब गोविंद राम शर्मा 30.09 प्रतिशत वोट हासिल कर चुनाव जीते थे तो संजय अवस्थी ने 26.47 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। यहां कांग्रेस के खेल अमर चंद पाल ने निर्दलीय लड़कर बिगाड़ा था। अमर चंद पाल को 18.32 प्रतिशत वोट पडे़ थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के भगत सिंह ने 13.14 प्रतिशत वोट हासिल कर सबको हैरान किया था। सीपीएम प्रत्याशी राम किशन ने 5.21 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। खास बात ये थी कि 2012 के चुनाव में अर्की विधानसभा क्षेत्र से 11 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया था। आजाद उम्मीदवार आशा परिहार ने 3.07 वोट हासिल किए थे। वहीं, शेष प्रत्याशियों में 2.98 प्रतिशत वोट विभाजित हुए थे।
ये अहम….
2012 में 11 प्रत्याशी मैदान में थे। 2017 में ये आंकड़ा 5 का था। 2022 में ये आंकड़ा 3 पर सिमट गया है। साफ जाहिर हो गया है कि मुकाबला आमने-सामने का है। 2012 में प्रभावशाली वोट हासिल करने वाले उम्मीदवारों की स्थिति क्या है। दीगर है कि 2007 में भी इस हलके से 9 प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाया था। उस चुनाव में धर्मपाल ठाकुर आजाद उम्मीदवार के तौर पर दूसरे स्थान पर थे। कांग्रेस को तीसरे स्थान पर रहना पड़ा था।
2003 में तो प्रत्याशियों की सूची 13 पहुंच गई थी। कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर ने 40.06 प्रतिशत वोट हासिल कर चुनाव जीता था। भाजपा के गोविंद शर्मा 37.43 प्रतिशत वोट हासिल कर सके थे। 1998 में कांग्रेस के धर्मपाल ठाकुर को 41.96 प्रतिशत वोट पड़े थे, जबकि बीजेपी के नगीन चंद्र पाल को 40.26 प्रतिशत मत हासिल हुए थे। हिमाचल विकास कांग्रेस के प्रत्याशी इंद्र सिंह ठाकुर ने 11.27 प्रतिशत वोट जुटाए थे। लिहाजा, ये साफ है कि हर चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के अलावा थर्ड फ्रंट में भी मत विभाजित होते रहे हैं। मगर ये पहला मौका है, जब 23 सालों में सबसे कम प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं।