हमीरपुर, 30 सितंबर : विकास की अलग-अलग परिभाषाएं अपनी रैलियों में मंत्री कहने से नहीं थकते। असली हकीकत तो ग्राउंड जीरो पर ही पता लगती है। हमीरपुर के उपमंडल बड़सर में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने विकास के साथ सरकार की नीतियों पर भी प्रश्न चिन्ह उठा दिए हैं। बड़सर के एक गांव में एक गर्भवती महिला की डिलीवरी जंगल में ही करवानी पड़ी, वजह यह थी कि उसके घर से सड़क मार्ग की दूरी 2 किलोमीटर थी। समय पर न पहुंच पाने के कारण डिलीवरी जंगल में ही करवानी पड़ी।
बधाई हो बेटा हुआ है, ये शब्द सुनते ही परिवार में खुशी की एक लहर दौड़ जाती है। यह शब्द अक्सर अस्पताल में सुनने को मिलते हैं परंतु आशा वर्कर सुषमा को यह शब्द जंगल के बीचों बीच बोलने पड़े। हुआ यूं कि हमीरपुर के बड़सर के पिलियार के सुगल निवासी संतोष कुमार की पत्नी को नेहा प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उन्होंने तुरंत ही बड़सर अस्पताल में डॉक्टर राकेश से बात कि और वे नेहा को लेकर हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गए। इस बीच उन्होंने नेहा की प्रसव पीड़ा की सूचना आशा वर्कर सुषमा को भी दे दी और वो उनके साथ हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गई। बदकिस्मती ये थी कि मेन सड़क घर से करीब दो किलोमीटर दूर थी।
रास्ता कच्चा टूटा-फूटा था, ऐसे में चार कंधों पर चारपाई प्रसूता के लिए एंबुलेंस हो गई। आधे रास्ते पहुंचते-पहुंचते प्रसव पीड़ा चरम पर थी। फिर क्या था, आशा वर्कर सुषमा देवी इनके लिए डॉक्टर रूपी मसीहा हो गई। जंगल लेबर रूम बन गया और धरती मां की गोद डिलीवरी टेबल।
प्रसूता ने घने जंगल में बेटे को जन्म दिया, किलकारियां गूंज उठी, लेकिन जहां इस बच्चे नई दुनिया देखी। वहीं इस डिलीवरी ने दुनिया को भी देवभूमि की असलियत दिखा दी कि आजादी के दशकों बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क नहीं है। मां और बच्चे को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां से बच्चे को कोई समस्या होने के कारण उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ रैफर कर दिया गया है।