लाहौल, 05 सितम्बर : जिले में चंद्रभागा नदी के किनारे बसा हुआ छोटा सा कस्बा उदयपुर कई चीजों के लिए अलग और मशहूर है। साल में लगभग 6 महीने बर्फ से ढके रहने वाली इस जगह पर माइनस 25 डिग्री सेल्सियस तक तापमान चला जाता है। समुद्र तल से 2,742 मीटर की ऊंचाई पर बसे उदयपुर छोटी सी आबादी वाला यह इलाका त्रिलोकीनाथ मंदिर के लिए भी मशहूर है। यह मंदिर बेहद खास है। इस मंदिर में हिंदू भी पूजा करते हैं और बौद्ध धर्म के अनुयायी भी। दुनिया में शायद यह इकलौता मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की पूजा दोनों धर्मों के लोग एक साथ करते हैं।

बता दे कि अब दुनिया के किसी भी कोने से बैठकर लाहुल स्पीति जिला में ऐतिहासिक त्रिलोकीनाथ मंदिर के दर्शन श्रद्धालु कर सकेंगे। त्रिलोकीनाथ मंदिर प्रबंधन कमेटी ने मंदिर के वेबसाइट लांच कर दी है। इस वेबसाइट में मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध है। इसके साथ ही इसी वेबसाइट के माध्यम से श्रद्धालु मंदिर में दान भी ऑनलाइन दें सकेंगे।
आगामी कुछ दिनों के भीतर यह सुविधा शुरू हो जाएगी। इससे संबंधित कार्य अंतिम चरण में है। यही नहीं अब मंदिर में होने वाली हर पूजा अर्चना को ऑनलाइन फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर दिखाया जाएगा, ताकि श्रद्धालु घर बैठे ऑनलाइन दर्शन कर सकें। जिलाधीश नीरज कुमार ने बताया कि मन्दिर की वेबसाइट लांच कर दी है। मंदिर में ऑनलाइन दान की सुविधा भी शुरू की जा रही है । फेसबुक, यूट्यूब के माध्यम से लाइव दर्शन दिखाएं जाएंगे।
ऐसे कर सकेंगे दान आपको त्रिलोकीनाथ मंदिर की वेबसाइट पर जाना होगा ।इसी में pay now का ऑप्शन आएगा जहां पर आपको क्लिक करना होगा। इसके बाद फोन पे, गूगल पे और पेटीएम का ऑप्शन आएगा। आप इन तीनों ऑप्शन में से किसी भी ऑप्शन का इस्तेमाल करके धन राशि दान कर सकते है।
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यहाँ अगस्त के महीने में त्रिलोकीनाथ के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। क्योंकि इस महीने में पौरी मेला आयोजित होता है, जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं। पौरी मेला त्रिलोकीनाथ मंदिर और गांव में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला तीन दिनों का भव्य त्यौहार है, जिसमें हिंदू और बौद्ध दोनों बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं।
इस पवित्र उत्सव के दौरान सुबह-सुबह, भगवान को दही और दूध से नहलाया जाता है और लोग बड़ी संख्या में मंदिर के आसपास इकट्ठा होते हैं और ढ़ोल नगाड़े बजाए जाते हैं। इस त्यौहार में मंदिर के अन्य अनुष्ठानों का पालन भी किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस दिन घोड़े पर बैठकर गांव आते हैं। इसी वजह से इस उत्सव के दौरान एक घोड़े को मंदिर के चारों ओर ले जाया जाता है। एक भव्य मेला भी आयोजित किया जाता है।