नाहन, 25 अगस्त : ये सफलता की कहानी, एक गरीब परिवार के बेटे की है। लगातार दिव्यांग बेटे रविंद्र ठाकुर को असफला मिल रही थी। लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ। अब जब सफलता मिली है तो बीपीएल की बेड़ियां भी टूट गई हैं। परिवार की गिनती अब बीपीएल में नहीं होगी। लंबे अरसे से बैंकिंग की प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रविंद्र को इस दौरान वरिष्ठ एचएएस अधिकारी केवल शर्मा का भी मार्गदर्शन मिल गया।
सोमवार को जब आयोग ने नतीजा घोषित किया तो परिवार के खुशी से आंसू छलक आए, क्योंकि शिलाई के समीप कांडी गांव का रहने वाला 27 वर्षीय रविंद्र अब हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर चयनित हो चुका था। खेती-बाड़ी करने वाले पिता इंद्र सिंह को इस बात का पक्का विश्वास था कि एक दिन बेटा परिवार की आर्थिक स्थिति को बदल देगा।
रविंद्र ने धर्मशाला में दिव्यांगों के हाॅस्टल में रहकर जमा दो की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद पांवटा साहिब डिग्री काॅलेज से ग्रेजुएशन की। बैंकिंग की तैयारी के लिए वो शिमला चला गया। इस दौरान उसे हर कदम पर एचएएस केवल शर्मा की मदद मिलती रही।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में रविंद्र ने साफ कहा कि दिव्यांग होने के साथ-साथ गरीबी भी एक चुनौती थी। वो लगातार तैयारी करते रहे, लेकिन कई बार पारिवारिक कारणों से अपनी मंजिल को पाने से एक कदम से चूके। उन्होंने कहा कि खेती-बाड़ी से घर परिवार चलाना मुश्किल था। इसी कारण भाई ने निजी क्षेत्र में नौकरी कर परिवार की आर्थिक स्थिति को सहारा देने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि खुशी की बात है कि परिणाम आने से पहले ही परिवार ने अपना नाम बीपीएल सूची से कटवा दिया था, क्योंकि पिता को पूरी उम्मीद थी कि बेटा इस बार सफल होने जा रहा है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि दिव्यांग प्रमाणपत्र का फायदा मिला।