शिमला ,25 जुलाई : हिमाचल के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ओंकार शर्मा (IAS Onkar Chand Sharma) का चंद महीनों के भीतर तीसरी बार तबादला हुआ है। इस बार उनसे आयुर्वेद विभाग छीन लिया गया है। ओंकार शर्मा से आयुर्वेद विभाग वापस लेकर उन्हें तकनीकी शिक्षा महकमे का प्रधान सचिव बनाया गया है।
दो जून को उन्हें प्रधान सचिव आयुर्वेद का जिम्मा सौंपा गया था। इससे पहले ओंकार शर्मा को राजस्व (Revenue) व बागवानी महकमे का भी जिम्मा मिला था, लेकिन उन्हें इस दायित्व से भी हटा दिया गया था।
सवाल उठता है कि 27 साल से आईएएस अफसर ओंकार शर्मा की कार्यशैली (Working) से राज्य सरकार नाखुश क्यों है,इसके पीछे कई आशंकाएं जाहिर की जा रही है। हर कोई ये समझ नहीं पा रहा है कि आखिरकार सरकार को तेज तर्रार आईएएस रास क्यों नहीं आ रहा है, उन्हें हाशिये पर क्यों रखा जा रहा है।
अफसरशाही में अपनी छाप छोड़ चुके ओंकार शर्मा हिमाचल के चंबा जिला से ताल्लुक रखते हैं। इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले ओंकार शर्मा 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने जहां भी काम किया, वहीं पर अपनी छाप छोड़ी।
कोरोना की पहली लहर में आपदा प्रबंधन का जिम्मा संभालकर ओंकार शर्मा अपनी कार्यकुशलता (work efficiency) का लोहा मनवा चुके हैं, तब बाहरी राज्यों में फंसे हिमाचलियों की घर वापसी में उन्होंने बेहतरीन भूमिका अदा की थी।
ओंकार शर्मा सिरमौर,मंडी, शिमला व कांगड़ा के डीसी भी वह रह चुके हैं। आईएएस अफसर के रूप में कई बड़े घोटालों की जांच में भी उन्हें जांच अधिकारी नियुक्त किया गया था, जिनमें लगभग एक दशक पहले हुआ शिक्षा बोर्ड का पेपर मार्किंग घोटाला भी शामिल था।
काबिल व निडर अधिकारी को एक बार फिर तबादले की मार झेलनी पड़ी है। इसकी वजह ये बताई जा रही है कि ओंकार शर्मा ने ट्राइबल इलाके में जॉइनिंग नहीं देने वाले आयुर्वेद डॉक्टरों पर कड़ी अनुशासनात्मक (disciplinary) कार्रवाई करते हुए उन्हें डिमोट कर दिया था। इससे आयुर्वेद डॉक्टर नाराज़ चल रहे थे। मामले के तूल पकड़ने पर सरकार ने ओंकार शर्मा का विभाग ही छीन लिया।
ओंकार शर्मा को आयुर्वेद विभाग (Ayurvedic department) से हटाने पर माकपा विधायक राकेश सिंघा (Rakesh Singha) ने सोशल मीडिया पर अपना एतराज जाहिर किया है। सिंघा ने कहा है कि संविधान के विरुद्ध बातें हो रही हैं। पूरा जनजातीय क्षेत्र (Tribal area) छोड़ दिया गया है। दुर्गम क्षेत्र में नियुक्तियां की जा रही हैं और तनख्वाह शिमला से निकाली जा रही है। सरकार मनमर्जी से नहीं, बल्कि नियमों के आधार पर चलती हैं। गैर संवैधानिक कार्य किए जा रहे हैं। इस मामले में प्रदेश के अधिकारियों को स्टैंड लेना चाहिए। ऐसे मामलों का समाधान क्या है, ये तो सरकार और मुख्यमंत्री को सोचना है।