शिमला, 20 जुलाई : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक्स्ट्रा कांस्टीट्यूशनल अथॉरिटी (अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकारिण) की सिफारिश पर कर्मचारियों के तबादले पर कड़ी आपत्ति जताई है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को ऐेसे मामलों में उचित कार्रवाई करने और इस संबंध में कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चैहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने ये आदेश विपेंद्र कालटा नाम के एक कर्मचारी याचिका पर पारित किए, जिसमें उनके स्थानांतरण आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि स्थानांतरण जनहित या प्रशासनिक अत्यावश्यकता में नहीं किया गया है, बल्कि एक डीओ नोट के आधार पर किया गया है और इसलिए यह कानूनी रूप से मान्य नहीं है।
याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता को स्थानांतरित करने की सिफारिशों की है, जिसकी प्रशासन के कामकाज और व्यवसाय में कोई भूमिका नहीं है, लिहाजा याचिकाकर्ता के स्थानांतरण को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकार पर सर्च लाइट चालू करने और यह याद दिलाने का समय है कि स्थानांतरण नीति को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए या राजनेताओं की सनक और सनक पर सरकारी कर्मचारियों को स्थानांतरित करने के लिए एक मजाक या उपकरण नहीं बनाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि एक आदर्श नियोक्ता होने के नाते सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने कर्मचारियों के हितों को राजनेताओं की चाल के खिलाफ सख्ती से सुरक्षित रखे। लोक सेवकों को बिना किसी भय या पक्षपात के अपने कार्यों का निर्वहन करने की आवश्यकता है और उन्हें राजनेताओं द्वारा खींची गई रेखा पर चलने की आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार यह तय करने के लिए सबसे अच्छी जज है कि अपने कर्मचारियों की सेवाओं को कैसे वितरित और उपयोग किया जाए। हालांकि इस शक्ति का प्रयोग ईमानदारी से वास्तविक और यथोचित और सार्वजनिक हित में किया जाना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि न्यायालयों और न्यायाधिकरणों से अधिकारियों को उचित स्थान पर स्थानांतरित करके प्रशासनिक प्रणाली के कामकाज में हस्तक्षेप करने की उम्मीद नहीं की जाती है।
हालांकि कोर्ट के लिए हस्तक्षेप करना आवश्यक हो जाता है, जब यह स्थानांतरण के मामले में सरकार द्वारा किए जा रहे घोर अनियमितताओं को नोटिस करता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को ऐसे अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकरणों को राज्य के प्रशासन और शासन में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। अन्यथा कानून के शासन के पूरी तरह से टूटने की पूरी संभावना है।
कोर्ट ने यह भी देखा कि चूंकि कोर्ट के पास कर्मचारियों के तबादलों से संबंधित मामलों की भरमार है, इसलिए सरकार को अपने विभागों, बोर्डों, निगमों आदि में ऑनलाइन ट्रांसफर को लागू करना चाहिए। एक ऑनलाइन स्थानांतरण नीति तैयार करके 500 से अधिक कर्मचारियों वाले और इस आशय के निर्देश न्यायालय द्वारा विभिन्न रिट याचिकाओं में पहले ही जारी किए जा चुके हैं।