शिमला, 17 जुलाई : लाहौल घाटी की चंद्र व भागा से उत्तराखंड की सीमा पर यमुना नदी में राजा वीरभद्र सिंह की अस्थि प्रवाहित कर दी गई। सूबे की कोई भी ऐसी नदी नहीं थी, जहां अस्थियां न पहुंची हों। हिमाचल के इतिहास में ऐसा पहली बार ही हुआ है, जब लाखों दिलों की धड़कन रही शख्सियत की इस अस्थियों को इस स्तर पर विसर्जित किया गया हो।
रिवायत के मुताबिक बेटे विक्रमादित्य सिंह ने अस्थि विसर्जन की परंपरा को हर की पौड़ी पर निभाया। बताया जा रहा है कि अस्थि विसर्जन के बाद अब रामपुर के पदम पैलेस का शोक भी टूट जाएगा।
किन्नौर में गंगोत्री व बास्पा के उदगम स्थल रानी कण्डा में भी परम्परा व मंत्रोच्चारण के साथ स्व. वीरभद्र सिंह की अस्थियों का विसर्जन किया गया। पराक्रम प्रवाह यात्रा के दौरान जिला के चौरा, निगुलसरी, भाबा नगर, टापरी व करछम मैं लोगों के लिए अंतिम बार दर्शन के लिए के लिए कुछ समय के लिए रखा गया।
लाहौल-स्पीति में अस्थियों के विसर्जन से पहले तांदी में बौद्ध यंत्रों व मंत्रोच्चारण के साथ अस्थि कलश यात्रा भी निकाली गई। इसमें काफी संख्या में लोग मौजूद थे। चंद्रभागा, सतलुज, यमुना, रावी, गिरिगंगा, ब्यास, चनाब, पार्वती व पब्बर इत्यादि जल धाराओं में अस्थियों के रूप में राजा वीरभद्र सिंह समा गए।
बता दें कि कांग्रेस में 68 विधानसभा क्षेत्रों में राजा वीरभद्र सिंह की अस्थियों को वितरित किया गया था। इसके लिए स्वयं मंडल अध्यक्ष अस्थि कलश लेने गए थे। 10 जुलाई 2021 को पदम पैलेस से पूर्व मुख्यमंत्री की अनंत यात्रा 12 मुखी बमाण पर निकली थी। अस्थि विसर्जन के बाद 19 जुलाई को पदम पैलेस में धर्म शांति का आयोजन किया जाएगा।
12 जुलाई 2021 को अस्थियां एकत्रित करने के बाद विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि हमारे जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत है। राजा वीरभद्र सिंह के विचार, सिद्धांत हमारे जीवन के अपरिहार्य अंग हैं, जिसे अपने जीवन का मार्गदर्शन करते हुए हम आगे बढेंगे। विक्रमादित्य ने कहा था कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर प्रदेश को एक नजर से देखना व बांधे रखना हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। प्रदेश के देवी-देवताओं व देव समाज में हमारा विश्वास ओर अटूट हो गया है।
विक्रमादित्य की ये बात भी काफी अहम मानी गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो किसी कारण से साथ छोड़ना चाहते हैं, उन्हें हम रोकेंगे नहीं। ये मानकर चलेंगे कि वो हमारे साथ कभी थे ही नहीं। साथी कम हों, पर असरदार हों, यह हमारे जीवन का अब मूलमंत्र है।