रामपुर बुशहर, 11 जुलाई : राजा वीरभद्र के निधन के बाद उनकी पार्थिव देह के समक्ष विक्रमादित्य सिंह का राजतिलक बंद कमरे में हुआ। अब वो बुशहर रियासत के 123वें राजा बन गए है। रियासत की वंशावली भगवान श्री कृष्ण से जुडी हुई बताई जाती है। राजतिलक के बाद विक्रमादित्य ने महल के खिड़की से परंपमरा के मुताबिक अभिनन्दन भी स्वीकार किया।

शनिवार को वीरभद्र सिंह की अंत्येष्टि से पहले पदम पैलेस में रीति रिवाजों के साथ विक्रमादित्य सिंह का राज्याभिषेक किया गया। ये कार्यक्रम सादगी से हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वीरभद्र सिंह की पार्थिव देह के सामने विक्रमादित्य सिंह का अभिषेक हुआ। सोशल मीडिया में विक्रमादित्य सिंह की राजसी वेशभूषा में जो तस्वीरें वायरल हुई थी वो तो असल ने उनके विवाह के समय की थी। विक्रमादित्य सिंह का राजतिलक तो साधरण लिबास में ही हुआ क्योंकि असल में दुःख की घडी थी। अंतिम संस्कार के दिन विक्रमादित्य सिंह ने सफ़ेद कुर्ता पजामा ही पहन रखा था।
इस दौरान केवल चुनिंदा लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति थी। देवी- देवताओं का भी आह्वान किया गया। इससे पहले विक्रमादित्य सिंह बुशहर रियासत के युवराज थे, लेकिन अब वह बुशहर रियासत के राजा बन गए है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ वर्तमान में मां भीमाकाली का मंदिर है, वहां पहले शोणितपुर होता था। ऐसी मान्यता है कि शोणितपुर राक्षस राजा बाणासुर की राजधानी थी। इसी जगह पर कृष्ण के पोते ने बाणासुर की पुत्री उषा का हरण किया था। विष्णु पुराण के अनुसार यहां उनका युद्ध हुआ तब से भगवान कृष्ण के वंशज इस रियासत पर शासन कर रहे है।
उधर कुल्लू की सैंज घाटी के शांघड़ में बुशहर में भी राजा का सिहासन मौजूद है। शांघड़ के ऐतिहासिक मैदान छोर पर आज भी सिहासन पर राजा के आलावा किसी को भी बैठने की अनुमति नहीं है। बुशहर रियासत की निजी सम्पति हुआ करती थी, लेकिन परिवार ने 500 बीघा जमीन देवी देवताओ के नाम कर दी थी। उम्मीद की जा रही है कि अब विक्रमादित्य सिंह राजा बनने के बाद इस आसन पर भी बैठेंगे। यहां पर मौजूद देव शंगचूल महादेव का इतिहास रामपुर व सांगला क्षेत्र से जुड़ा है।
खैर, ये साफ़ नहीं हुआ है कि विक्रमादित्य का राजतिलक पिता वीरभद्र सिंह के जीते जी हो सकता था या नहीं। हर किसी के जहन में एक सवाल ये भी था कि मौजूदा समय में राजतिलक के मायने क्या है, दरअसल राजघरानो में आज भी रियासत काल की परम्पराओ का वहन किया जाता है जो परिवारों का आंतरिक मामला होता है।
करीब सात साल पहले सिरमौर रियासत में 9 साल के लक्ष्य का राजतिलक हुआ था लेकिन उस समय इसे मंगल तिलक परिभाषित किया गया था। जयपुर के राजघराने की राजमाता पदमनी देवी के नाती लक्ष्य का मंगल तिलक किया गया था। राजसी तरीके से शाही महल में ये रिवायत निभाई गई थी।