शिमला, 11 जुलाई : हिमाचल की राजनीति के लिए पिछले पांच महीने दुखद साबित हुए हैं। मार्च से जुलाई के दौरान देवभूमि ने चार बड़े सियासी चेहरे खो दिए हैं। भाजपा और कांग्रेस के बड़े राजनेताओं ने सक्रिय राजनीति के बीच दुनिया को अलविदा कर दिया। पहले फतेहपुर से कांग्रेस विधायक सुजान सिंह पठानिया, फिर मंडी से भाजपा के सांसद रामस्वरूप शर्मा, जुब्बल-कोटखाई के भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा और अब हिमाचल की सियासत का प्रमुख चेहरा व कांग्रेस के कदावर नेता वीरभद्र सिंह हमारे बीच नहीं रहे।
इसी साल फरवरी में कांगड़ा जिले के कद्दावर नेताओं में शुमार फतेहपुर से विधायक सुजान सिंह पठानिया का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। 17 मार्च को नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास में मंडी लोकसभा क्षेत्र से सांसद रामस्वरूप शर्मा की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। दिल्ली पुलिस की जांच में आत्महत्या की बात सामने आई।
इसके बाद 5 जून को प्रदेश सरकार के मुख्य सचेतक एवं जुब्बल कोटखाई सीट से विधायक नरेंद्र बरागटा का लंबी बीमारी के चलते पीजीआई चंडीगढ़ में उपचार के दौरान देहांत हो गया। अब हिमाचल की राजनीति के राजा वीरभद्र सिंह के निधन ने पूरे प्रदेश को शोक में डूबा दिया है।
वीरभद्र सिंह का जाना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है। वीरभद्र सिंह के सहारे पिछले चार दशकों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज होती आ रही कांग्रेस पार्टी के लिए आने वाला समय चुनोती भरा रहने वाला है। हिमाचल में गुटबाजी के भंवर में फंसी कांग्रेस पार्टी के लिए वीरभद्र सिंह की भरपाई करना आसान नहीं होगा। अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी नेताओ को एकजुट करना आलाकमान के लिए बड़ी चुनौती रहेगा।
प्रदेश कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के नेताओं की भरमार है और वे मुख्यमंत्री बनने के सपने ले रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर रहने की संभावना बढ़ जाती है। प्रदेश में एक-एक कर भाजपा व कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की खाली होती गई लोकसभा सीट और विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं। मंडी लोकसभा, फतेहपुर व जुब्बल कोटखाई विधानसभा सीटों के अलावा अब अर्की विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना तय है। दिवंगत वीरभद्र सिंह अर्की से कांग्रेस के विधायक थे।