शिमला, 08 जुलाई : हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह के निधन से पूरा प्रदेश शोक में डूब गया है। वीरभद्र सिंह के बगैर हिमाचल की राजनीति में जो शून्य पैदा हुआ है, वह जल्दी भरा नहीं जा सकेगा। वीरभद्र सिंह जैसे लोकप्रिय व करिश्माई नेता हिमाचल ने बहुत कम देखे हैं।
वीरभद्र सिंह एक कुशल प्रशासक के तौर पर जाने जाते रहे। छह बार मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उनकी अफसरशाही पर खासी पकड़ थी। यही वजह रही कि उनके कार्यकाल में अफसरशाही कभी भी सरकार पर हावी नहीं हो पाई। वीरभद्र सिंह की इतनी धाक थी कि उनके निर्देशों को जमीन पर उतारने में अधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
हिमाचल की राजनीति में उनके दबदबे और लोकप्रियता का अंदाजा इसी से हो जाता है कि वे छह बार मुख्यमंत्री चुने गए। वह विधायक और सांसद भी रहे। दो बार केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने अहम ओहदा संभाला। वह संकल्प-शक्ति के धनी थे और उतार-चढ़ाव को शांति से झेलना उन्हें आता था।
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वर्ष 2012 में भाजपा नेताओं द्वारा सीडी कांड में भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद एक बार उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। लेकिन बड़े से बड़े झटके के बाद भी वे डिगे नहीं और छह माह बाद हुए हिमाचल विधानसभा चुनाव में अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की बदौलत उन्होंने कांग्रेस को प्रदेश की सत्ता पर काबिज कर दिया तथा छटी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बाद में स्पेशल कोर्ट ने उन्हें सीडी मामले में आरोपमुक्त कर दिया।
वीरभद्र सिंह का निधन हिमाचल कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नाम से जानी जाने वाली कांग्रेस पार्टी तो जैसे एकाएक अनाथ हो गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा सदमा है। पिछले चार दशक से कांग्रेस पार्टी वीरभद्र सिंह के सहारे सत्ता पर काबिज हो रही थी। उनके न रहने का असर आगामी विधानसभा चुनाव में साफ तौर पर महसूस किया जाएगा।
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करीब चार दशक में ऐसा पहली बार होगा, जब कांग्रेस पार्टी वीरभद्र सिंह के बिना चुनाव में उतरेगी। हिमाचल में कांग्रेस पार्टी की ताकत वीरभद्र सिंह ही रहे हैं। उनकी धाक से प्रदेश कांग्रेस में दूसरी कतार का नेतृत्व नहीं उभर सका। लिहाजा पार्टी के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि वीरभद्र सिंह के बगैर वह अगला विधानसभा चुनाव कैसे लड़ पाएगी।
वीरभद्र सिंह के काम में उम्र कभी नहीं बनी बाधा, 80 की आयु में थी युवाओं जैसी चुस्ती…
छठी मर्तबा मुख्यमंत्री बनने पर वीरभद्र सिंह 80 साल के करीब पहुंच गए थे, लेकिन उम्र कभी भी उनके कार्य में बाधा नहीं बनी। वे युवाओं जैसी चुस्ती से काम करते थे। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हिमाचल विधानसभा बनी, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में लगातार पांच साल तक हिमाचल का बजट पेश किया। एक मर्तबा वीरभद्र सिंह ने 3 घंटे 30 मिनट बिना रूके बजट भाषण पड़ा, जो कि रिकार्ड बना।
वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 83 वर्ष की आयु में उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा। वीरभद्र सिंह कांग्रेस की सत्ता में वापिस तो नहीं करवा पाए, लेकिन उन्होंने नए विधानसभा क्षेत्र अर्की से जीत दर्ज की, वहीं उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह भी चुनाव जीतकर पहली बार विस पहुंचे। हिमाचल के इतिहास में ये पहला मौका रहा, जब पिता-पुत्र एक साथ विधानसभा में पहुचे हों। वीरभद्र सिंह विधानसभा में सबसे उम्रदराज विधायक थे।
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गरीबों और दीन-दुखियों के मसीहा बनकर उभरे
राजा वीरभद्र सिंह के नाम से लोगों के बीच लोकप्रिय वीरभद्र सिंह गरीब लोगों के लिए मसीहा के तौर पर जाने जाते रहे। उन्होंने गरीबों के कल्याण व विकास के लिए कई अहम कार्य किए।
वीरभद्र सिंह कर्मयोगी की तरह ताउम्र जनसेवा में डटे रहे। वीरभद्र सिंह आम जनता की समस्याओं के समाधान के लिए अपने निजी व सरकारी आवास में खुला दरबार लगाते थे। प्रदेश में सामान्य जीवन यापन करने वाली बड़ी आबादी को लाभान्वित करने के लिए वीरभद्र सिंह ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सरकारी डिपुओं में दालें और तेल उपलब्ध करवाना शुरू किया।
प्रदेश के लाखों लोगों को आज भी सस्ते राशन का लाभ मिल रहा है। वीरभद्र सिंह ने कई मौकों पर मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत दीन-दुखियों व आर्थिक तंगी से जुझ रहे बीमार लोगों को आर्थिक मदद उपलब्ध करवाई।
आम जनता की समस्याओं के निदान के लिए वीरभद्र सिंह हालीलॉज और अपने सरकारी आवास ओकओवर में खुला दरबार लगाते थे। जहां प्रदेश के कोने-कोने से लोग अपनी समस्याएं लेकर वीरभद्र सिंह से व्यक्तिगत तौर पर मिलते थे। वीरभद्र सिंह मौके पर ही समस्याओं का निजात करने के अधिकारियों को सख्त निर्देश देते थे। वीरभद्र सिंह की इस सादगी और अंदाज़ का हर कोई कायल था और उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग पहचान दिलाई।