नाहन, 07 जुलाई : हिमाचल की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील (Largest Natural Lake) श्री रेणुका जी में मछलियों की जनसंख्या का विस्फोट (population explosion) दर्ज हो रहा है। धार्मिक आस्था की वजह से झील से मछलियों (Fishes) के आखेट (hunting) पर पाबंदी (ban) रहती है, साथ ही ये झील वैटलैंड (Wetland) का हिस्सा है। भगवान परशुराम की जन्मस्थली में श्री रेणुका झील लाखों श्रद्धालुओं (pilgrims) की आस्था का केंद्र है।

झील में तैराकी (Swimming) के शौकीनों की मानें तो अब तैरने में डर लगता है, क्योंकि मछलियों का आकार बेहद ही बड़ा हो चुका है। यहां तक की कई मछलियां 50 किलो तक की भी हो सकती हैं। बता दें कि श्री रेणुका झील में सैंकड़ों कछुओं (tortoises) का भी ठिकाना है। फिलहाल जनसंख्या के आंकड़ों को लेकर तो स्थिति साफ नहीं है, लेकिन एक्सपर्टस (Experts) की मानें तो मछलियों की संख्या करोड़ों में हो सकती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से (scientific point of view) एक मछली को पनपने के लिए एक क्यूबिक मीटर (cubic meter) जगह चाहिए होती है। ये झील करीब 3 किलोमीटर की परिधि (periphery) में फैली हुई है। जहां तक प्रजातियों (species) का सवाल है तो कैटफिश (Cat Fish) के अलावा महाशीर (mahseer fishes) की आबादी है। मछलियों से जुड़ी जानकारी रखने वाले सभी जानते हैं कि कैटफिश की प्रजाति खतरनाक होती हैं।
अगर नहीं किया गया काबू तो…
जानकारों के मुताबिक करीब एक साल पहले श्री रेणुका जी में वैटलैंड डे (Wetland Day)के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। इसमें मछलियों की जनसंख्या विस्फोट को लेकर चिंता जताई गई थी। मत्स्य विभाग (fisheries department) को मिली स्टडी की मानें तो अब यही हालात मिलने की स्थिति में बड़े पैमाने पर (On Large scale) मछलियों के मरने का सिलसिला भी शुरू हो सकता है। इसकी वजह ऑक्सीजन की कमी के साथ-साथ पानी के दूषित (Polluted) होने को माना जा रहा है। गनीमत इस बात की है कि दशकों से झील में मछलियों के मरने का मंजर कभी भी सामने नहीं आया। इसे धार्मिक आस्था (religious belief) से भी जोड़कर देखा जाता है।
ये बोले मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक (assistant director) कतेश चौहान ने कहा कि झील में मछलियों की जनसंख्या कई गुणा बढ़ चुकी है। इसे नियंत्रित करने के लिए प्रशासन को कई उपाय भी सुझाए गए हैं। उन्होंने कहा कि मछलियों को अक्सर लोग उन्मादी भोजन देते हैं। साथ ही झील का पानी भी दूषित हो रहा है। एक सवाल के जवाब में सहायक निदेशक ने माना कि ऐसे हालात में मछलियों के मरने का सिलसिला भी शुरू हो सकता है।
क्यों हो गया डरावना मंजर…
पर्यटक व स्थानीय लोग मछलियों को खाना खिलाने को पुण्य मानते हैं। यही कारण है कि मछलियों को रोजाना बड़ी मात्रा में बाहर से भोजन मिलता है। काफी अरसा पहले प्रशासन ने बाहरी खाना खिलाने पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन पुुराने आदेशों की जमकर अवहेलना (contemn) होती है। एक तथ्य ये भी हैं कि मछलियां झील के भीतर खरपतवार (Weed) को साफ करती हैं। ये भी शोध का विषय है कि बाहरी खाना मिलने से मछलियों पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है।
क्या दिए गए सुझाव…
एमबीएम से बातचीत में सहायक निदेशक का कहना था कि झील से मछलियों को पकड़कर अन्य जलाशयों (reservoirs) में रिलीज किया जा सकता है। उन्होंने ये भी माना कि स्थिति ऐसी हो चुकी है कि झील से मछलियों को पकड़ना भी आसान नहीं है। न केवल इनका आकार बढ़ चुका है, बल्कि वजन में भी अप्रत्याशित वृद्धि (unexpected growth) हो रही है। सहायक निदेशक कतेश चौहान का ये भी कहना था कि गनीमत इस बात की है कि झील में मौजूद मछलियां खुद ही अंडों को नष्ट कर देती हैं, अन्यथा स्थिति इस समय अधिक विस्फोटक (explosives) हो सकती थी।
झील की खास बातें…
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर मुख्यालय नाहन से करीब 40 किलोमीटर दूर यह झील पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बिन्दू बनती है। समुद्रतल से लगभग 672 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील की परिधि 3214 मीटर है। राज्य में सबसे बड़ी प्राकृतिक झील होने का दर्जा प्राप्त है। हिमाचल में इस समय तीन रामसर साइट (Wetland) घोषित हैं। इसमें रेणुका जी के साथ-साथ पौंग व चंद्रताल झील शामिल हैं।
हालांकि झील में बरसात के दौरान आसपास के ऊंचाई वाले इलाकों से भी पानी पहुंच जाता है, लेकिन इसकी खूबसूरती यह है कि सतह (Surface) पर कुदरती जलस्त्रोत (natural spring) मौजूद हैं। झील की गहराई को लेकर अलग-अलग तरह के मिथ्य हैं। ऐसी भी धारणा है कि रेणुका झील भगवान परशुराम की माता रेणुका देवी का अवतार है, जो ग्रंथों के मुताबिक ऋषि जमदग्नि की पत्नी है।