नाहन, 02 जुलाई : जलाल नदी के पार बसे सैनधार की पहचान कल-कल बहते पानी के साथ-साथ नकदी फसलों (Cash Crop) व मेहनतकश किसानों (toiling farmers) की वजह से होती है। मगर अब यहां के शिक्षित तबके (Educated) ने सेब की पैदावार को लेकर भी कदम आगे बढ़ाए हैं।

दरअसल, कम ऊंचाई में उगने वाली वैरायटी (Variety) के पौधों को रोंपा है। इस साल इलाके के करीब एक दर्जन लोगों में खुशी की लहर है, क्योंकि सैनधार के पराड़ा में सैंकड़ों पेड़ों पर सैंपल (Sample) आ गए हैं। हालांकि सैंपल के तौर पर आए सेबों की छंटनी कर दी गई है, ताकि पौधों की ग्रोथ (Growth) सही तरीके से हो सके। रूट स्टाॅक (Root Stock) की मदद से बागवानों ने पौधों को लगाया था।
आप ये जानकर हैरान होंगे कि कुछ बागवान (gardener) ऐसे भी हैं, जिन्होंने पिछले दो साल में 700 से भी अधिक पौधों को सफलतापूर्वक (successfully) लगाया है। सेब की बागवानी की तरफ बढ़ने वालों में ओम प्रकाश, राम चंद्र, प्रमोद शर्मा, महेंद्र सिंह, बीरबल, रमेश, हरिंद्र, संदीप, रमेश, शिवदेव, हिम्मत के अलावा अर्जुन अत्री इत्यादि शामिल हैं। इस साल सेब की गाला वैरायटी में जमकर सैंपल आए हैं। इलाके में पलम, आडू, किवी व अखरोट के पौधों (Plants) को भी सफलतापूर्वक लगाया गया है।
बता दें कि सैनधार क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा खेत होगा, जहां कुदरत ने सिंचाई (irrigation) की सौगात न दी हो। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में प्रगतिशील युवा किसान व बागवान (progressive young farmer and gardener) अर्जुन अत्री का कहना था कि सरकारी नौकरी की तरफ भागने की बजाय खेत में ही रोजगार के अवसर मिलते हैं, बशर्ते इनका समझदारी से दोहन (tapping) किया जाए।
बता दें कि सैनधार में लगाए गए सेब के बगीचों (apple orchards) का अंदाज भी अलग है। इन्हें इस तरीके से लगाया गया है, जिससे ये बेहद ही खूबसूरत भी दिखते हैं। साथ ही बीज की जमीन (land) का इस्तेमाल अन्य फसलों को लगाने में किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि निचले इलाकों में ये ऐसा पहला मौका है, जब इस स्तर पर सेब के बगीचों को लगाया गया है।
संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई के ऊपरी ठंडे इलाकों (cold areas) में लोगों ने बड़ी संख्या में सेब की बागवानी की तरफ रूझान (trend) किया है। सिरमौर में राजगढ़ क्षेत्र की बागवानी में एक अलग पहचान है, मगर अब सैनधार भी इस पंक्ति में खड़ा होता नजर आ रहा है।
एमबीएम न्यूज से बातचीत में युवा बागवान अर्जुन अत्री ने बताया कि गाला व स्प्र किस्मों को लगाया गया है। ये सेब खाने में बेहद ही स्वादिष्ट व पौष्टिक (tasty and nutritious) होते हैं। उन्होंने बताया कि सेब के रूट स्टाॅक को कश्मीर के अनंतनाग से लाया गया था। इसके अलावा नौणी विश्वविद्यालय से भी हर कदम पर मदद मिलती रही है।