नाहन, 01 जुलाई : ट्रांस गिरि के टिम्बी-बकरास मार्ग पर दर्दनाक हादसे का मंजर अब भी लोगों के मन में ताजा है। हादसे वाली जगह कुछ समय बाद एक मंदिर का निर्माण हो जाएगा। स्थानीय लोग आत्माओं की शांति के लिए ऐसा करेंगे। शोक व्यक्त करने वाले भी धीरे-धीरे परिवारों को मिले गहरे जख्मों को भूल जाएंगे।

आखिर में जख्म उन परिवारों के जीवन में ताउम्र रहेंगे, जिन्होंने अपने जवान बच्चों को खो दिया। एक अभागा पिता कैसे इस बात को भूल पाएगा कि कैसे अपने दो जवान बेटों की अर्थी को कंधा दिया है। अगर आप ट्रासगिरि क्षेत्र के अधिकतर इलाकों में जाएंगे तो क्रैश बैरियर या पैराफिट की बजाए सड़कों के किनारे छोटे-छोटे मंदिर नजर आएंगे। दरअसल, ये वो जगहें हैं, जहां से वाहन के खाई में लुढ़क जाने के कारण लोगों की मौत हुई होती है। बाद में उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कर दिया जाता है।
इस मामले में भी संभवतः ऐसा ही हो। काश, प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रपति भी टिवटर के जरिए शोक व्यक्त करने के साथ-साथ सूबे के मुख्यमंत्री से ये पूछ लेते कि क्यों रिमोट इलाके की संकीर्ण सड़कों पर पैराफिट या क्रैश बैरियर नहीं लगते। तुरंत ही इसके लिए बजट भी स्वीकृत किया जा सकता था।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि राजनीतिज्ञ व अफसर इस बात को क्यों भूल जाते हैं कि उनको भी अक्सर ऐसी ही सड़कों से गुजरना पड़ता है। बदकिस्मती से वो भी हादसे का शिकार हो सकते हैं। टिम्बी से बकरास मार्ग का निर्माण करीब दो दशक पहले हुआ। 2014 में इस मार्ग पर निजी बस दुर्घटना के बाद लोक निर्माण विभाग ने पैराफिट व बैरिकेटस का कार्य शुरू किया। ग्रामीणों की मानें तो इस कार्य को अधूरा ही छोड़ दिया गया था। इस बात पर हमेशा ही सस्पेंस बना रहता है कि शासन और प्रशासन हादसों से सबक क्यों नहीं लेता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में हादसे के बाद मंदिर निर्माण व न्यायिक जांच दो सामान्य बाते हैं। हमेशा ही ऐसा होता है। बदलाव के तौर पर सड़कों का सफर सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता। एक पल के लिए यह मान भी लिया जाए कि चालक से चूक हुई है तो क्या ऐसी हालत में अनमोल जीवन बचाने के लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है। खैर, उम्मीद की जानी चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों को सुरक्षित करने के लिए मौजूदा जयराम सरकार गंभीर प्रयास कर रही है।
बता दें कि सड़कों के ऐसे हालात सिरमौर में ही नहीं, अपितु राज्य के अधिकांश जिलों में है। उच्च स्तर पर ही मास्टर प्लान बनाकर रणनीति तैयार की जा सकती है। अनमोल जीवन की कीमत केवल शोक तक ही नहीं होनी चाहिए।
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