शिमला, 28 जून : वक्त के थपेड़ों ने एक दृष्टिबाधित एवं मनोरोगी (visually impaired and psychotic) बुजुर्ग महिला स्वर्णा देवी के पास सब कुछ होते हुए भी दर-दर की ठोकरें (stumbling) खाने के लिए मजबूर कर दिया है। पति की मौत के बाद 10 बीघा जमीन, 4 कमरों का मकान, दो भाइयों और माँ के जीवित होने के बावजूद वह दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज (tempted) है।
‘बेहद जर्जर और असुरक्षित (shabby and unsafe) हो चुके मकान में रह रही इस प्रदेश बेसहारा (Helpless) बुजुर्ग महिला के पास शौचालय, पेयजल और रसोई गैस जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। घर के चारों तरफ गंदगी और झाड़ियां दिखती हैं। वह नर्क से बदतर जीवन जीने पर मजबूर है।
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने यह मामला सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग (Social Justice & Empowerment Department) के अतिरिक्त मुख्य सचिव (Additional Chief Secretary) संजय गुप्ता के समक्ष उठाते हुए उनसे स्वर्णा देवी को तुरंत रेस्क्यू (rescue) करने और वृद्धाश्रम (Old Age Home) में भेजने के साथ ही उचित इलाज कराने का अनुरोध किया है। उनका कहना है कि इससे बुढ़ापे में असहाय महिला के मानवाधिकारों (Human rights) का संरक्षण हो सकेगा। संजय गुप्ता का कहना है कि वे इस मामले में उचित कार्रवाई करेंगे।
यह दुखद कहानी नारकंडा के नजदीक जादौण पंचायत के गांव बटाड़ा की स्वर्णा देवी (60) की है। उनके पति मंगतराम की 25 -30 साल पहले हुई मृत्यु से वह उभरी भी न थी कि इकलौते बेटे की भी मौत हो गई। उन्होंने राजकीय प्राथमिक विद्यालय क्यारा में अंशकालिक जलवाहक (Part Time Water carrier) के पद पर भी सेवाएं दी। सदमे ने उनका मानसिक संतुलन कमजोर कर दिया और वक्त के साथ नजर भी काफी हद तक जाती रही। शायद यही कारण था कि विद्यालय ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। अब उन्हें सिर्फ विधवा पेंशन का सहारा है।
बिजली बिल (Electricity Bill) का भुगतान न होने के कारण बिजली विभाग ने उनके जर्जर हो चुके मकान का कनेक्शन (Connection) काट दिया। अब वहां अंधेरा पसरा रहता है। वह अपना खाना खुद नहीं बना सकतीं। दो वक्त पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। उनके भाई का कहना है कि वह स्वर्णा देवी को अपने पास लाए भी थे। लेकिन मानसिक संतुलन (Mental) ठीक न होने के कारण वह परिवार में एडजस्ट नहीं हो सकीं।
दस दिन पहले प्रो. अजय श्रीवास्तव ने शिमला जिला प्रशासन से स्वर्णा देवी को रेस्क्यू कराने और वृद्ध आश्रम में भेजने का अनुरोध किया था। इसके बाद कुमारसेन के तहसील कल्याण अधिकारी (Tehsil Welfare Officer) को मौके पर छानबीन के लिए भेजा गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी शिमला भेज दी। लेकिन रिपोर्ट के कागज कहीं फाइलों में उलझे रह गए और बुजुर्ग महिला की जिंदगी अभी भी थपेड़े खा रही है।