शिमला, 26 जून : कोरोना के इलाज के लिए कारगर माने जा रहे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन का हिमाचल में भी उपयोग शुरू हो गया है। अमेरिका में विकसित किया गया यह इंजेक्शन प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में स्वास्थ्य विभाग के उपनिदेशक को लगाया गया। उपनिदेशक डाॅक्टर रमेश चंद कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगाने के बाद पॉजिटिव आए हैं।
शुक्रवार को उन्हें मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन लगाया गया। इंजेक्शन देने के दो घंटे तक उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया। इंजेक्शन लगाने से मरीज को कितना फायदा हुआ, यह चार से पांच दिन में पता चल पाएगा। चिकित्सकों के मुताबिक अभी मरीज की स्थिति ठीक है।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन हल्के एवं मध्यम संक्रमण वाले मरीजों को दिया जाता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के सिरिविमैब और इमडेवि मैब का कॉकटेल (मिश्रण) है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस इंजेक्शन को लगा चुके हैं।
माना जाता है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन शरीर में ऑक्सीजन लेवल को स्थिर रखता है और फेफड़ों में वायरस के संक्रमण को रोकता है। हिमाचल प्रदेश में पहली बार इस इंजेक्शन का इस्तेमाल हुआ है। शोधकर्ताओं व डॉक्टरों का मानना है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को जल्द न्यूट्रलाइज कर देती है।
मौजूदा समय में हिमाचल के पास मात्र 200 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन हैं। ये इंजेक्शन हिमाचल को विदेश से मिली आपातकालीन सामग्री के तहत मिले हैं। इनकी कीमत अढ़ाई करोड़ के करीब बताई जा रही है।
आईजीएमसी के प्रिंसिपल प्रो. रजनीश पठानिया ने बताया कि आईजीएमसी में पहली बार किसी कोरोना संक्रमित मरीज को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन लगाया गया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह इंजेक्शन कोरोना मरीजों में बीमारी बढ़ने से रोकने में समक्ष होगी।