सोलन, 17 जून : क्या आप विश्वास करेंगे, अगर आधी चिता (Deadbody) बनने के बाद बारिश आ जाए तो इसे भीगने से बचाने के लिए छाते (Umbrella) खोलने पड़ते हैं। साथ ही पार्थिव देह को मुखाग्नि (Fire) के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। जी हां, बिलकुल। कसौली उपमंडल के खजरेट गांव में ऐसा होता है।
इत्तफाक (Coincidence) से इस बार फेसबुक पर वीडियो लाइव भी हुआ तो तस्वीरें सामने भी आ गई। दिल को पसीज (Piss) देने वाली इस घटना से कई सवाल (Queston) पैदा होते हैं। शिखर (Peak) की ओर हिमाचल के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। साथ ही पंचायतीराज के सुदृढ़ीकरण (Reinforcement) का भी ढोल पीटा जाता है। गांव के एक करीब 44 वर्षीय व्यक्ति की कैंसर से मौत हो गई थी।
बुधवार को अंतिम संस्कार किया जाना था, मगर बारिश थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी। आधी चिता बन चुकी थी, लिहाजा इसे बारिश से भी बचाना जरूरी था। इसी कारण लकड़ियों (Wood) को भीगने से बचाने के लिए मौजूद लोगों ने छातों का भी सहारा लिया। यकीन कीजिए, दशकों से ऐसा चलता आ रहा है। तर्क दिया गया कि दो लाख रुपए की सरकारी राशि मंजूर (Approve) हुई थी, लेकिन इसको खर्च नहीं किया जा सक रहा है। कमाल की बात ये भी है कि सूबे के स्वास्थ्य मंत्री (Health Minister) डाॅ. राजीव सैजल के गृह निर्वाचन क्षेत्र से ये तस्वीरें व वीडियो सामने आया है।
ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि क्या स्थानीय विधायक को इस बात का इल्म (Knowledge) नहीं है कि उनके अपने ही क्षेत्र में अंतिम संस्कार का एक स्थान ऐसा भी है, जहां बारिश में दाह संस्कार नहीं हो पाता। शव को भी इंतजार (Wait) करना पड़ता है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क को ग्रामीणों ने तस्वीरें व वीडियो पे्रषित किया है, ताकि सरकारी व्यवस्था (Arrangement) की पोल खुल सके।
ग्रामीणों का ये भी कहना था कि अगर निर्माण में कोई अड़चन (Hitch) पैदा कर भी रहा है तो इस पर सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए। खैर, उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही व्यवस्था की नींद खुलेगी। इसके बाद मुर्दे को सुकून (Relax) से लकड़ियां नसीब हो पाएंगी।