मंडी, 13 जून : कारगिल युद्ध (kargil War) 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी।
भारतीय सेना (Indian Army) ने अपनी मातृभूमि में घुसपैठियों (Intruders) को खदेड़ने को एक अभियान चलाया। जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। जिनमें से 52 रणबांकुरे हिमाचल के सपूत थे। उल्लेखनीय है, कि नरेन्द्र मोदी जो उस समय हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे, ने कारगिल पहुंचकर वीर सैनिकों की हौसला अफजाई की थी।
कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) को अदम्य साहस और पराक्रम के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित राइफलमैंन संजय कुमार, हिमाचल की बहादुरी व देशभक्ति का दूसरा जीवंत उदाहरण है। कारगिल युद्ध में प्रदान किए गये चार ‘परमवीर चक्र’ में से दो हिमाचल के वीरों के नाम आये।
कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे उंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। करीब दो महीने तक चली इस लड़ाई में अंततः भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए पाकिस्तानी सेना (Pakistan Army) को मार भगाया।
भारतीय सेना के पास न तो घुसपैठियों की ताकत व संख्या की सही जानकारी थी, न ही ऐसे अभियानों में प्रयुक्त किए जानी वाले विशेष ड्रेस व दूसरे उपकरण थे। साथ ही इस अभियान में अधिकतर हमले माइनस तापमान वाली रातों में किए जाते थे। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सेना ने अपनी शौर्य गाथा लिखी।
भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई की, पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रक्तरंजित होते रहे, परंतु अभियान नहीं रुका। रुका तो सिर्फ चोटियों पर कब्जा करने के बाद। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण चोटी थी तोलोलिंग (Battle of Tololing), यह वही पहली चोटी थी, जिस पर भारतीय सेना (Indian Army) ने सबसे पहले कब्जा (Captured) जमाया और यहीं से कारगिल की लड़ाई में एक नया मोड़ आया तोलोलिंग युद्ध का अभियान 20 मई 1999 को शुरू हुआ इसका जिम्मा 18 ग्रेनेडियर्ज को दिया गया।
ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर (Brigadier khushal Thakur)अपनी स्मृतियों के पन्नों को पलटते आज भी उस अभियान को नहीं भूल पाते। अपनी यूनिट के साथ कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) में आतंकवाद (Terrorism) से लड़ रहे थे। उनकी यूनिट को तुरंत ही कारगिल बुलाकर इस अभियान में लगा दिया गया। वे भूल नहीं पाते कि वे किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्ज के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था। कैसे 18 ग्रेनेडियर के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल खुशाल ठाकुर के आवाहन ‘विजय या वीरगति’ परी कमान के सर्वाधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।
तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर्ज के 4 अधिकारियों सहित 25 जवान शहीद हो चुके थे। यह एक अपने आप में बहुत बड़ी क्षति थी। वहीं 2 राजपूताना राइफल्स के 3 अधिकारियों सहित 10 जवान शहीद हुए। कारण स्पष्ट था, ऊपर चोटी पर बैठा दुश्मन सेना की हर हरकत पर नजर रखे हुए था। आसानी से इस अभियान को नुकसान पहुंचाता रहा। सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए, बड़े नुकसान के बाद कर्नल खुशाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफल बनाया।
13 जून 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर्ज व 2 राजपूताना राईफल्ज ने 24 दिनों के रात-दिन संघर्ष के बाद तोलोलिंग पर कब्जा किया, परंतु तोलोलिंग की सफलता बहुत महंगी साबित हुई, इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए। अंततः कर्नल खुशाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग (Died in the Lap) कर वीरगति (Martyrdom) को प्राप्त हुए। पहली चोटी ‘तोलोलिंग’ व सबसे ऊंची चोटी ‘टाईगर हिल’ पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य कर्नल खुशाल ठाकुर व उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्स को प्राप्त हुआ था।
भारत के राष्ट्रपति (President of India) ने इस विजय व ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर्स को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा, जो कि भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकाॅर्ड है।