सोलन, 11 जून : सुसाइड जैसे कायरतापूर्ण कदम उठाने की सोचने वालों को उमा कुमारी के जज्बे को देखना चाहिए। साथ ही उमा से प्रेरणा भी लेनी चाहिए। आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि सौ प्रतिशत दिव्यांग उमा कुमारी का हौंसला कोविड संकट पर ही भारी पड़ गया। वो न तो चल पाती है, न ही शरीर के कुछ अन्य अंग सौ फीसदी साथ देते हैं। बावजूद इसके वो क्षेत्रीय अस्पताल में डयूटी देती रही।
सोचिए, जब ट्रांसपोर्ट व्यवस्था भी न चल रही हो, उसे शहर से कई किलोमीटर दूर नौणी से डयूटी देने आना पड़ता हो तो आने का कैसे इंतजाम करती होगी। हालांकि ऐसा भी बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने दिव्यांगों व गर्भवती महिलाओं को कोविड संकट के दौरान डयूटी पर न बुलाने के निर्देश भी दिए थे, लेकिन रोगी कल्याण समिति के दौरान भर्ती उमा कुमारी को कोई ऐसे आदेश नहीं मिले। सार्वजनिक परिवहन ने उमा की मुसीबत को चार गुणा बढ़ा दिया था, लेकिन उसका जज्बा केवल एक ही था, उसे डयूटी करने के आदेश मिले हैं तो इसकी पालना हर हाल में करनी है।
हैरान करने वाली बात यह है कि कोविड संकट के दौरान डयूटी करने के बावजूद भी उमा कुमारी को अपनी तनख्वाह के लिए भी प्रशासनिक अधिकारियों की मिन्नत करनी पड़ी। खैर, उमा कुमारी एक ऐसी कोविड वाॅरियर है, जिसने अपने हौंसले से तमाम मुश्किलों का सामना करना कर्त्तव्य परायणता को निभाया।
उधर, एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने अस्पताल के वरिष्ठ अधीक्षक श्याम लाल वर्मा से बात की तो पहले वो इस मुद्दे पर बात करने से ही मुकर गए, लेकिन बाद में कहा कि उमा की डयूटी कोरोना वार्ड में नहीं लगाई गई, बल्कि जनरल डयूटी करती रही।
कुल मिलाकर इस बात की जांच होनी चाहिए कि क्या नियमों के तहत डयूटी करवाना सही था नहीं। बहरहाल, उमा कुमारी के जज्बे व हिम्मत की दाद तो देनी ही पड़ेगी।