शिमला, 02 जून : सेब को ओलों से बचाने के लिए हिमाचल सरकार ने देश में निर्मित स्वदेशी एंटीहेल गन को इस्तेमाल में लाने की कवायद शुरू कर दी है। वर्तमान में सेब बगीचों में महंगी कीमत वाली विदेशी एंटीहेल गन को प्रयोग में लाया जा रहा है।
बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ने मंगलवार को बागवानी विभाग की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आईआईटी मुंबई व डाॅ. वाई.एस.परमार बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के संयुक्त प्रयासों से स्वदेशी एंटीहेल गन विकसित की गई हैं।
उन्होंने कहा कि बागवानों के हित के मध्यनजर इस स्वदेशी एंटीहेल गन को ट्रायल के आधार पर प्रदेश में 8 से 10 स्थानों पर स्थापित करने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया जाए ताकि इस स्वदेशी एंटीहेल गन का अध्ययन किया जा सके और बागवानों को कम कीमत वाली स्वदेशी एंटीहेल गन तकनीक उपलब्ध हो सके।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रदेश में जिस विदेशी एंटीहेल गन का प्रयोग किया जा रहा है उसकी कीमत लगभग 2 से 3 करोड़ रुपए हैं। उन्होंनेे कहा कि स्वदेशी तकनीक की एंटीहेल गन के माध्यम से ही एंटीहेल गन की कीमतों को कम किया जा सकता हैं।
महेंद्र सिंह ने कहा कि सेब की पेटियों की दरें एचपीएमसी के सहयोग से निर्धारित की जाए और सेब की पेटियों को बनाने वाले निर्माताओं को सूचीबद्ध किया जाए ताकि बागवानों को उचित दरों पर सेब की पेटियां समय पर उपलब्ध हो सकें। उन्होंने कहा कि गत्ते की पेटियों के स्थान पर प्लास्टिक कार्टन का उपयोग सेब के विपणन हेतु प्रयोग के तौर पर करने की भी संभावना तलाशी जाए।
महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि विश्व बैंक पोषित बागवानी परियोजना के अंतर्गत बनाए जा रहे मार्केटिंग यार्ड एवं शीत गृह निर्माण आदि के कार्यों में तेजी लाई जाए ताकि सेब उत्पादक बागवानों को सुविधा मिल सके। उन्होंने कहा कि जो सेब मंडी मध्यस्थता योजना के अंतर्गत एचपीएमसी और हिमफेड द्वारा प्रापण किए जाते हैं, उनकी बोरियों पर फल प्रापण केंद्र का नाम व संख्या दर्ज की जाए ताकि प्रापण किए गए फलों की गुणवत्ता की जांच हर स्तर पर सुनिश्चित की जा सके।
उन्होंने अधिकारियों को बागवानों की सुविधा के लिए समय पर आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए ताकि बागवानों को कार्टन व सेब ढुलाई के लिए ट्रकों की कमी सहित किसी अन्य समस्या का सामना न करना पड़े।