मंडी, 29 मई : हिमाचल के करसोग उपमंडल में कार्यरत स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों ने गजब की मिसाल पेश की है। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में सड़क सुविधा से महरूम ग्राम पंचायत सरतेयोला में बुजुर्गों और असमर्थ लोगों को कोरोना वायरस की रोकथाम के टीके लगाए। खतरों का खिलाडी बन वैक्सीन लगाने पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम में फार्मासिस्ट रमेश वर्मा, फीमेल हेल्थ वर्कर कला ठाकुर व याचना शामिल थे।
पंचायत तक पहुंचने में स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों को इतनी ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ी कि एक जगह उन्हें जेसीबी मशीन के बकेट में बैठकर रास्ता पार करना पड़ा। फिर भी इन कर्मियों ने हिम्मत नहीं हारी और पंचायत के मुख्यालय तक पहुंचकर टीकाकरण के कार्यक्रम को पूरा करके दिखाया।
जेसीबी के बकेट में बैठने के बाद चढ़ा पहाड़…
मंडी के करसोग उपमंडल में सरतेयोला पंचायत में सड़क निर्माण का कार्य चला है। इसी कारण रास्ता भी क्षतिग्रस्त हो गया है। ऐसे में टूटे हुए रास्ते को पार करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के कर्मी जेसीबी के बकेट में बैठे। फिर दूसरी तरफ पहुंचकर पैदल यात्रा शुरू की। पंचायत तक पहुंचने के लिए बिना रास्ते वाले पहाड़ को भी चढ़ा। इसका वीडियो भी सामने आया है. जिसमें देखा जा सकता है कि कैसे जान हथेली पर रखकर इन कर्मियों ने टीकाकरण केंद्र तक पहुंचने का जोखिम उठाया था। 5 से 6 किमी की पैदल यात्रा के बाद यह दल टीकाकरण केंद्र पहुंच पाया।
बुजुर्गों ने जताया आभार…
कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए जारी टीकाकरण अभियान के तहत इस पंचायत में कैंप लगाने का मकसद यही था कि यहां रह रहे बुजुर्गों और असमर्थ लोगों को टीके लगाए जा सकें। इसके लिए बीएमओ करसोग की तरफ से विशेष दल यहां पर भेजा गया था। सरतेयोला पंचायत के प्रधान तिलक वर्मा ने इसके लिए बीएमओ करसोग और आई हुई टीम का आभार जताया और उम्मीद जताई कि भविष्य में भी इनका सहयोग ऐसे ही मिलता रहेगा।
सड़क सुविधा से महरूम है पंचायत…
करसोग उपमंडल के तहत आने वाली सरतेयोला पंचायत आजादी के 74 सालों के बाद भी सड़क सुविधा से महरूम है। हालांकि पंचायत तक सड़क पहुंचाने का कार्य चला हुआ है, लेकिन तीन वर्षों से यह काम कछुआ गति से हो रहा है। जिस कारण ग्रामीणों को ढेरों परेशानियों से जूझना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले करसोग उपमंडल में ही एक महिला स्वास्थ्य कर्मी ऑफ़ रोड बाइक चलाकर पल्स पोलियो टीकाकरण के लिए दूरदराज क्षेत्र में पहुंची थी। महिला की कत्र्तव्य परायणता की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी की गई थी।