नाहन, 28 मई : मानवीय प्रयास अगर शिद्दत से होता है तो कायनात भी हाथ फैलाकर मदद को तैयार रहती है। यहां तक की टूटी सांसों को भी प्राण मिल जाते हैं। ऐसा रियल लाइफ में हुआ है। शिलाई से पांवटा साहिब के बाद नाहन, फिर चंडीगढ़ रैफर नवजात शिशु के पिता ने कालाअंब में उम्मीद छोड़ दी थी।
मानवीय कोशिश से टूटी सांसें अचानक ही चल पड़ी। 108 के ईएमटी उदय व राकेश के अलावा पायलट प्रमोद कुमार की टोली महिला सहित नवजात की रक्षक बनकर आई। इसमें पांवटा साहिब में तैनात ईएमटी कुलदीप व पायलट बिट्टू ने भी योगदान दिया। क्रिटिकल कंडीशन में शिल्ला गांव की रहने वाली रवीना को शिलाई अस्पताल से पांवटा साहिब रैफर किया जाता है। 7 माह की गर्भवती महिला की डिलीवरी में कॉम्प्लीकेशन्स थी। 108 कोविड ड्यूटी पर थी। लिहाजा, ऑफ डयूटी चल रहे 108 के ईएमटी उदय ने अपनी कार में हीे महिला को पांवटा साहिब तक ले जाने का फैसला लिया, मगर टिम्बी व सतौन के बीच महिला की हालत नाजुक हो गई।
बोहराड़ में सड़क के किनारे कार में ही शिशु की किलकारी तो गूंज गई, लेकिन वहां मौजूद लोगों के माथे पर पसीना था, क्योंकि रात के वक्त जच्चा-बच्चा की सुरक्षा की जिम्मेदारी आ पड़ी थी। शायद कुदरत यहीं से कुछ ओर सोच रही थी, क्योंकि अगर खुद ईएमटी उदय खुद कार को न चला रहे होते तो कुछ भी अनहोनी हो सकती थी।
रात 10ः30 से 11ः00 बजे के बीच जच्चा-बच्चा को लेकर पांवटा साहिब अस्पताल पहुंचे, तुरंत ही नाहन अस्पताल रैफर कर दिया गया। दूसरी तरफ से एंबूलेंस को आने में कुछ वक्त लग रहा था तो उदय ही जच्चा-बच्चा को लेकर नाहन की तरफ रवाना हो गएं सूरजपुर में एंबूलेंस मिली तो उन्हें नाहन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कुलदीप व बिट्टू ने ले ली। मेडिकल काॅलेज से रात डेढ़ बजे के आसपास जच्चा-बच्चा को चंडीगढ़ रैफर किया गया।
सूचना मिलते ही आपातकालीन स्थिति में ईएमटीे राकेश व पायलट प्रमोद ने दायित्व संभाल लिया। कालाअंब पहुंचने पर नवजात शिशु के पिता ने उम्मीद छोड़ते हुए कहा कि बच्चा दुनिया में नहीं रहा है, लिहाजा वापस चलना चाहिए। लेकिन 108 कर्मियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी। तुरंत ही ईएमटी ने नवजात शिशु को सीपीआर देना शुरू किया। चंद मिनटों में ही शिशु की मूवमेंट आ गई। पायलट प्रमोद ने नाहन से मेडिकल काॅलेज 32 सैक्टर चंडीगढ़ पहुंचने में महज सवा घंटे का वक्त लगाया।
इसी दौरान कालाअंब में 5-10 मिनट एंबूलेंस को रोककर शिशु को सीपीआर भी दी गई थी। हिमाचल में 108 एंबूलेंस सेवा का यह दुर्लभ मामला हो सकता है। उधर, ईएमटी उदय ने एमबीएम से बातचीत में कहा कि रात 9ः20 बजे बोहराड़ में डिलीवरी हुई थी। हालांकि प्रसूति शिलाई में भी संभव हो रही थी, लेकिन आपातकालीन स्थिति में मुश्किल हो सकती थी। उन्होंने बताया कि संयोगवश ही वो खुद ही 7 माह की गर्भवती को लेकर अस्पताल जा रहे थे, लिहाजा रास्ते में डिलीवरी में दिक्कत नहीं हुई।
उधर, 108 के नाहन में तैनात ईएमटी राकेश व पायलट ने एमबीएम न्यूज से बातचीत में कहा कि रात 2ः33 बजे चंडीगढ़ के लिए रवाना हुए थे। शुक्रवार सुबह 3ः50 बजे वो जच्चा-बच्चा को लेकर 32 सैक्टर पहुंच गए थे। उनका कहना था कि कालाअंब में पिता ने उम्मीद छोड़ दी थी। मगर सीपीआर की बदौलत शिशु की सांसें चल उठी। उनका कहना था कि कालाअंब से चंडीगढ़ के बीच नवजात शिशु की मूवमेंट नाॅर्मल थी।
कुल मिलाकर अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसी विकट परिस्थितियों में पैदा हुए शिशु को लंबी आयु प्रदान करे।