शिमला, 23 मई : सूबे में अप्रैल और मई महीनों में बेमौसमी बर्फबारी और ओलावृष्टि से बागवानी को 280 करोड़ का नुकसान हुआ है। अप्रैल महीने में व्यापक बर्फबारी व ओले गिरने से बागवानी विभाग ने 254 करोड़ रुपए के नुकसान का आंकलन किया है। सबसे अधिक नुकसान सेब की फसल को हुआ है।

राज्य के सेब बाहुल्य क्षेत्रों शिमला, कुल्लू और चम्बा में बर्फबारी से सेब के बगीचे तबाह हो गए। अप्पर शिमला के नारकंडा, ठियोग, चौपाल और कोटखाई के इलाकों में अप्रैल में 6 से 8 इंच बर्फ गिरी। कई स्थानों पर ओले भी गिरे। सेब के पौधों को ओलों से बचाने के लिए एंटी हेल नेट का इस्तेमाल भी किया जाता है। लेकिन मौसम के कहर से ये भी सेब को महफूज नहीं रख पाई।
दरअसल इन क्षेत्रों में जो बर्फ जनवरी में गिरती थी, वो इस बार अप्रैल के तीसरे हफ्ते में गिरी। साथ ही भारी ओलाबारी भी हुई, जिससे नुकसान और बढ़ गया।
सूबे के बागवानी विभाग के निदेशक जेपी शर्मा ने शनिवार को बताया कि अप्रैल और मई के दो महीनों में बागवानी को 280 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया है। विभाग की टीमों ने अप्रैल में 254 करोड़ और मई में अब तक 26 करोड़ के नुकसान का आंकलन किया है। किन्नौर जिला से बागवानी को हुए नुकसान की रिपोर्ट अभी आनी बाकी है।
जेपी सिंह ने बताया कि बर्फबारी-ओलाबारी से सेब व अन्य फलों चेरी, पल्म, खुमानी, बादाम आदि को क्षति हुई है। सेब की फसल सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। विभाग ने नुकसान को रिपोर्ट तैयार कर प्रदेश सरकार को सौंप दी है और अब सरकार को तय करेगी कि प्रभावितों को किस दर से मुआवजा दिया जाना है।
इस बीच बागवानी विभाग द्वारा किये गए नुकसान के आंकलन को किसान संघर्ष समिति ने नाकाफी बताया है। समिति का कहना है कि बर्फबारी-ओलाबारी से बागवानी को हुआ वास्तविक नुकसान 280 करोड़ से कहीं अधिक है।
समिति के महासचिव संजय चौहान ने बताया कि शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मण्डी, लाहौल स्पीति, सोलन, सिरमौर, चम्बा, कांगड़ा में बर्फबारी तथा भारी ओलावृष्टि व वर्षा से फलों व अन्य फसलों को भारी क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश मे अकेले सेब की करीब 70 प्रतिशत फ़सल बर्फ़बारी व भारी ओलावृष्टि से बर्बाद हो गई तथा एक फौरी अनुमान के अनुसार करीब 2000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान बागवानों को हुआ है।
उधर, सब्ज़ी एवं फल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने बताया कि प्रदेश सरकार को अब बागवानों को मुआवजा प्रदान करने में देरी नहीं करनी चाहिए, ताकि बागवानों को लगे कि इस आपदा की घड़ी में सरकार बागवानों के साथ खड़ी है।