चौपाल, 18 मई : राजधानी शिमला के नागरिक उपमंडल चौपाल में पशु क्रूरता से जुड़ा एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है। जहां एक अस्थाई गौसदन से गौवंश को देर रात चोरी छिपे जंगल ले जाते वक्त करीब 20 मवेशियों की मौत हो गई है। इस मामले में पुलिस द्वारा 2 ट्रकों को कब्जे में लिया गया है और अब तक तीन लोगों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार चौपाल के नेरवा में निर्मित अस्थाई गौसदन से सैकड़ों गौवंश को रविवार देर रात 2 ट्रकों में भरकर देईया के जंगलों में ले जाया जा रहा था। मगर गांव वालों को जैसे ही इसकी भनक लगी उन्होंने विरोध किया और पुलिस को मामले की सूचना दी गई। विवाद बढ़ने के बाद गौवंश से भरे हुए दोनों ट्रकों को वापिस नेरवा के अस्थाई गौसदन पहुंचाया गया। जहां ट्रकों से गौवंश को उतारते वक्त करीब 20 गाय मृत अवस्था मे पाई गई।
पुलिस द्वारा मृत गौवंश का पोस्ट मार्टम करवाया गया, जिसमें दम घुटने के कारण गौवंश की मौत होने की बात सामने आई। सोमवार को सभी मृत मवेशियों को जेसीबी की सहायता से दफनाया गया है और अन्य मवेशियों को नेरवा के अस्थाई गौ सदन में रखा गया है।
सांकेतिक तस्वीर
नेरवा पुलिस थाना के प्रभारी प्रदीप ठाकुर ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 429,34 और पशु क्रूरता अधिनियम की धारा 11 के तहत मामला दर्ज किया गया है। फिलहाल ट्रक चालक सहित कुल 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस द्वारा पूरे मामले की गहनता से जांच की जा रही है।
आपको बताते चले कि कुछ स्वयंसेवकों द्वारा बीते वर्ष नेरवा में एक अस्थायी गौसदन का निर्माण करवाया गया था। करीब एक वर्ष तक सैकड़ों बेसहारा गौवंश के लिए लाखों रुपये खर्च करके हरे चारे और आसरे की व्यवस्था भी स्वयं सेवकों द्वारा अपने स्तर पर ही गई थी। गौवंश की अच्छी देखभाल के लिए दो कर्मचारियों को भी मासिक वेतन पर नियुक्त किया गया था जिनकी तनख्वाह भी स्वयंसेवियों द्वारा अदा की जाती थी।
इस दौरान प्रशासन और सरकार से कई मर्तबा सहायता मुहैया करवाने का आग्रह भी किया गया मगर कहीं से कोई मदद नहीं मिल पाई।
पूरे एक वर्ष तक सैकड़ों बेजुबान गौवंश की निस्वार्थ सेवा करने के बाद स्वयंसेवक भी हरे चारे और कर्मचारियों की तनख्वाह देने में असमर्थ हो गए थे। लिहाजा गर्मियों में स्थानीय लोगों द्वारा भी अपने मवेशियों को जंगल मे चरने के लिए छोड़ा जाता है। ऐसे में बेसहारा गौवंश को स्वयंसेवियों द्वारा भी शायद कुछ समय के लिए जंगलों में हरा घास चरने के लिए छोड़ने का फैसला लिया होगा।
गौर हो कि प्रदेश सरकार द्वारा हर वर्ष शराब के कारोबार से गौवंश की सेवा के नाम पर करोड़ो रूपये का टैक्स इकट्ठा किया जाता है। ऐसे में अगर नेरवा के स्वयंसेवकों को सरकार द्वारा कोई आर्थिक सहायता मुहैया करवाई जाती तो शायद ये वाक्या भी पेश न आया होता। बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम से सरकार और प्रशासन को भी सबक लेने की जरूरत है। ताकि गौसेवा के नाम पर शराब की बोतलों से इकट्ठा होने वाले करोड़ो रूपये से बेसहारा और बेजुबान गौवंश के लिए कोई ठोस नीति बनाकर बेहतर व्यवस्था हो पाए।