शिमला, 07 अप्रैल : हिमाचल में कोरोना महामारी के जबरदस्त प्रकोप के बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन समेत मेडिकल उपकरणों की किल्लत और कोरोना से निपटने में फैली अव्यवस्थाओं को लेकर प्रदेश हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार से कोरोना मरीजों के उपचार में वेंटिलेटर की महत्ता को लेकर अपना पक्ष रखने और विभिन्न अस्पतालों में बंद पडे वेंटिलेटरों के इस्तेमाल को लेकर प्रस्तावित योजना का ब्यौरा भी तलब किया है।

हाईकोर्ट ने केंद्र द्वारा जीवन रक्षक दवाओं के आबंटन में हिमाचल से भेदभाव करने पर नाराजगी जाहिर की है।
इसके अलावा प्रदेश में ऑक्सीजन की उपलब्धता के साथ कोविड के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों में रोगियों की क्षमता के लिए बिस्तरों की संख्या और ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर सरकार ने क्या कदम उठाए हैं, इसका भी ब्यौरा मांगा है।
नाहन मेडिकल कॉलेज समेत सूबे के अन्य अस्पतालों में मेडिकल उपकरणों की किल्लत के मुद्दे पर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति चंदर भूषण बारोवालिया की खंडपीठ ने ये आदेश पारित किए हैं। मामले की अगली सुनवाई 10 मई को निर्धारित की गई है। हालांकि ये जनहित याचिका नाहन मेडिकल कॉलेज से जुडी हुई थी, लेकिन हाईकोर्ट सुनवाई के दौरान इसका दायरा बढ़ा दिया।
अहम बात ये है कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार से ये भी पूछा है कि प्रदेश की 18 से 44 साल के आयु की आबादी के लिए कोविड टीकाकरण किस तिथि से शुरू किया जाएगा।
दरअसल प्रदेश हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है कि प्रदेश में कोविड से निपटने के इंतजाम नाकाफी हैं। याचिकाकर्ता ने डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन में ऑक्सीजन सुविधाओं की कमी और 25 वेंटिलेटरों के काम नहीं करने का जिक्र किया है।
हाईकोर्ट ने सरकार ने जरूरी दवाओं को लेकर तमाम विवरण अदालत के सामने पेश करने के आदेश भी दिए हैं। याचिका की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि प्रदेश में कोरोना के मामलों में भारी बढोतरी हो रही है और देश में मौतों की दर भी सबसे ज्यादा है। ऐसे में अदालत इस समय कुछ निर्देश देना जरूरी समझती है।
खंडपीठ ने प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच करने के लिए अधिकृत प्रयोगशालाओं, क्लीनिकों और अस्पतालों को बढाने, रैपिड एंटीजन और आरटी पीसीआर के अलावा अन्य किटों के इस्तेमाल करने पर विचार करने के आदेश दिए हैं, ताकि रोजाना आधार पर ज्यादा आबादी के टैस्ट किए जा सके।
इसके अलावा टैस्ट करने के लिए मोबाइल वैन का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए। अदालत ने कहा है कि कोविड-19 के लिए समर्पित अस्पताल को बढ़ाया जाना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि आने वाले दिनों की स्थिति का अंदाजा लगाते हुए मौजूदा इंतजाम नाकाफी है। राज्य सरकार को ये भी निर्देश दिये कि केंद्र की मदद से अस्थाई अस्पताल बनाने पर भी विचार करना चाहिए।
खंडपीठ ने प्रदेश सरकार को ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों को बढ़ाने और पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर मुहैया कराने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा टैस्टिंग केंद्रों के नाम पते रोजाना के बुलेटिन में प्रकाशित करने के भी आदेश दिए तथा ये भी कहा कि बुलेटिन में यह साफ होना चाहिए कि किस अस्पताल व कोविड केयर केंद्र में कितने बिस्तर खाली है। इन बिस्तरों की श्रेणी का भी जिक्र होना चाहिए। इसके अलावा वेंटिलेटर वाले कितने बिस्तर हैं और ऑक्सीजन युक्त कितने बिस्तर है। इन सुविधाएं के बिना कितने बिस्तर हैं, इसका भी रोजाना के बुलेटिन में जिक्र होना चाहिए।
खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई निजी अस्पताल कोविड मरीजों के टैस्ट कराने और अन्य सुविधाएं मुहैया कराने से इंकार करता तो उसके खिलाफ आपदा अधिनियम के तहत कार्रवाई करे। अगर सरकार ने इन अस्पतालों को प्लांट लेने के दौरान कोई रियायतें या प्रोत्साहन राशि दी है तो सरकार को उन रियायतों को वापस ले लें और रियायत और प्रोत्साहन की तमाम रकम वसूल करे। इसके अलावा प्रदेश सीटी स्कैन मशीनों को खरीदने पर भी विचार करें, क्योंकि यह मशीनें इस बीमारी का पता लगाने में बेहद जरूरी है।
अधिवक्ता वंदना मिश्रा ने एमबीएम न्यूज़ से बातचीत में कहा कि याचिका का दायरा पूरे प्रदेश का किया गया है।
बता दे कि सुनवाई दौरान खंडपीठ ने एमबीएम न्यूज़ की एक वीडियो क्लिप को भी देखा, जिसमे सीएम के नाहन प्रवास दौरान मेडिकल कॉलेज के बहार एक पॉजिटिव महिला तड़प रही थी, जिसके पति की पिछली रात कोविड की वजह से मौत हो गई थी। महिला के पति को भी समय पर अस्पताल में दाखिल नहीं किया गया था। ये जनहित याचिका नाहन के आशुतोष गुप्ता ने दायर की थी।