शिमला, 03 मई : हिमाचल हाईकोर्ट ने जिला कांगड़ा के एक कोविड मेक शिफ्ट अस्पताल में एक डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि वर्ष 2018 में वह एक दुर्घटना के कारण पांच महीने तक अस्पताल में भर्ती रहा। इसलिए शरीर में आई समस्या के चलते वह प्रतिनियुक्ति के स्थान पर सेवाएं देने में असमर्थ होगा।

याचिका का निपटारा करते हुए न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश चंदर भूसन बारोवालिया की खंडपीठ ने कहा कि अधिक भीड़ वाले अस्पतालों में स्वास्थ्य कार्यकर्ता, पुलिसकर्मी और अन्य फ्रंट लाइन के कार्यकर्ता पहले से ही अत्यधिक भार से घिरे हुए हैं। वे लोग लगभग एक वर्ष से बिना थके इस महामारी का सामना कर रहे हैं।
न्यायालय ने कहा कि वर्तमान में कोविड -19 के खिलाफ सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है, जो कि बड़े पैमाने पर होने वाली मौतों में किसी आपदा से कम नहीं है और इसलिए, यह जरूरी है कि फ्रंट लाइन के कर्मचारियों को रोटेशन के आधार पर काम करने के लिए लगाया जाए । कोविड-19 मामलों में अचानक भारी वृद्धि के साथ स्वास्थ्य प्रणाली ध्वस्त होने की संभावना बनी हुई है।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता उन कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश कर रहा है जो अब उसे सौंपी गयी हैं। क्योंकि यह दिखाने के लिए कोई समकालीन रिकॉर्ड नहीं है कि याचिकाकर्ता किसी भी तरह से स्थानांतरित स्टेशन पर सेवा करने के लिए अक्षम है। न्यायालय ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी एक पद का धारक होता है और यह उसकी इच्छा के आधार पर नहीं बनाया जा सकता है।
जब एक बार कोई व्यक्ति नियमों के अनुसार किसी पद को स्वीकार कर लेता है, तो वह केवल एक साधारण व्यक्ति नहीं रह जाता है, बल्कि शासन का एक अभिन्न अंग होता है। न्यायालय ने कहा कि सेवा करने के लिए आत्म-अनिच्छा की आड़ में, याचिकाकर्ता को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इस प्रवृत्ति से निपटना होगा और कड़ाई के साथ इस पर अंकुश लगाना होगा।