नाहन, 29 अप्रैल : 400 साल पहले बसे शहर के प्राचीन श्री काली स्थान मंदिर के महंत व राजगुरु पूज्य कृष्णा नाथ जी ने 84 साल की उम्र में संसार को त्याग दिया है। वह मंदिर के इस पद पर लगभग 40 साल से तैनात थे। बता दें कि मंदिर के निर्माण के बाद से ही इसकी कमान महंतों को ही सौंपे जाने की परंपरा है।

कोविड से संक्रमित हो जाने की वजह से राजगुरु महंत कृष्णा नाथ जी एक निजी अस्पताल में वेंटिलेटर पर थे। बीती देर शाम उनका निधन हो गया। इसके बाद मंदिर कमेटी ने मंदिर परिसर में ही उनके समाधि की व्यवस्था की।
वीरवार सुबह कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत महंत कृष्णा नाथ जी को मंदिर परिसर में ही समाधि दी गई। इस दौरान पीपीई किट में चुनिंदा लोगों को ही मौजूद रहने की अनुमति दी गई थी। इसके अलावा मंदिर के बाहर सुरक्षा व्यवस्था भी की गई थी। एमबीएम को मिली जानकारी के मुताबिक आजादी के बाद ये राजगुरु की समाधि की परंपरा पांचवी बार निभाई गई है। मगर ये पहली बार हुआ है कि महामारी की वजह से सूक्ष्म रिवायत निभाई गई।
काली स्थान मंदिर के एक छोर पर वट वृक्ष के नीचे हनुमान जी की भव्य प्रतिमा है। इसके साथ ही राजगुरु को समाधि दी गई। कमेटी की बैठक के बाद अगले राजगुरु की नियुक्ति पंजाब के अबोहर से की जा सकती है। पहली शर्त गुरु के कनपटा होने की होती है। मंदिर कमेटी के सदस्यों ने भी कोविड-19 प्रोटोकॉल को बेहतरीन तरीके से पालना की, राजगुरु व महंत के संसार त्यागने की जानकारी को प्रचारित नहीं किया गया, ताकि समाधि के दौरान कोई भीड़ न जुट जाये।
कालीस्थान मंदिर कमेटी के सचिव स्वामी तीर्थ नंद ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क को बताया कि महंत जी कुछ अरसे से अस्वस्थ थे। बीती देर शाम संसार को त्याग दिया। प्राचीन परंपराओं के तहत महंत जी मंदिर परिसर में ही समाधि में विलीन हो गए।
उल्लेखनीय है कि राज्य में कोविड प्रोटोकॉल के तहत किसी स्थान पर संत के समाधि में विलीन होने की यह पहले एक घटना हो सकती है। उधर ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष सुखदेव शर्मा ने कहा कि राजगुरु एवं श्री काली स्थान मंदिर नाहन के महंत पूज्य कृष्णा नाथ जी के आकस्मिक निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण सभा दिवंगत पवित्र आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है।
इसी बीच इतिहासकार व पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर सिंह ने कहा कि जैसलमर में भी इस तरह की परंपरा जारी है। उन्होंने माना कि आजादी के बाद से पांचवें राजगुरु ने मंदिर परिसर में समाधि ली है।
मंदिर का इतिहास
क्षत्रियों में काली को युद्ध की देवी माना गया है। इस कारण भी हर जगह पूजा की जाती है। शहर में काली के मंदिर का निर्माण 1830 (विक्रमी सम्वत् 1887) में राजा विजय प्रकाश ने करवाया था। इस मंदिर की मूर्ति को कुमाऊं वाली रानी साहिबा ही कुमाऊं से लेकर आई थी। इसके बाद ही राजा विजय प्रकाश ने मंदिर के निर्माण का फैसला लिया था।
मंदिर में पूजा के लिए जोगी नाथ महंत को गद्दी सौंपी गई थी। मंदिर परिसर में ही 24 भुजा देवी मंदिर का निर्माण राजा फतेह प्रकाश ने करवाया था। इसे आज श्रद्धालु बाला सुंदरी माता कहकर भी पूजते हैं। 24 भुजा वाली देवी के मंदिर के पहले महंत बाबा भृडंग नाथ कनफटा योगी थे। इसके बाद आमनाथ, फिर तोप नाथ महंत बने। इसके बाद ज्वाला नाथ व वीरनाथ ने भी गद्दी को संभाला।
महंत जगन्नाथ की मृत्यु के बाद उनका चेला कार्यवाहक के रूप में भी कार्य करता रहा। स्वभाव सही न होने की वजह से राजा ने उन्हें महंत नियुक्त नहीं किया था। राजा ने उन शक्तियों को मोती नाथ नामक साधु को दे दिया, जो संस्कृत भाषा का ज्ञान भी रखता था। बताते हैं कि सिरमौर रियासत के शासकों द्वारा मंदिरों व धार्मिक अनुष्ठानों में गहरी रुचि ली जाती थी।
शहर के श्री जगन्नाथ जी मंदिर के पहले महंत का दर्जा बाबा बनवारी दास जी को प्राप्त है, जो शहर की स्थापना के वर्ष में ही हुए।