शिमला, 15 अप्रैल : सड़कों के किनारे अक्सर वाहन चालकों के लिए एक चेतावनी लिखी होती है, सावधानी हटी-दुर्घटना घटी। शायद जो इससे सबक लेते हैं वो सुरक्षित अपने घर पहुंचते हैं। इसी चेतावनी को अब बढ़ते कोविड के मामलों से भी जोड़कर देखा जाने लगा है।
सवाल, ये उठ रहा है कि क्या राज्य का स्वास्थ्य महकमा लापरवाह हो चुका है। अगर तुलना की जाए तो 2020 में जब लाॅकडाउन का ऐलान हुआ था तो इसके बाद सख्ती बरती जाने लगी थी। कोविड रोगियों को घरों से ही उठाकर आइसोलेशन में पहुंचा दिया जाता था। धीरे-धीरे सख्ती चरणबद्ध तरीके से ढीला किया जाने लगा। आलम ये हुआ कि सब कुछ सामान्य हो गया। अब अचानक जब कोविड के मामलों में वही पुराने तरीके से संख्या बढ़ रही है तो कोविड पाॅजिटिव पाए गए मरीजों का फाॅलोअप तक ही नहीं किया जा रहा। एमबीएम न्यूज नेटवर्क के पास ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं।
15 अप्रैल 2021 की दोपहर तक के आंकडे़ देखें जाएं तो राज्य में 72,702 मामले सामने आ चुके हैं। 6739 मामले एक्टिव हैं। चंद महीने पहले करीब 8 से 10 जिले ऐसे थे, जहां एक्टिव मामलों की संख्या 10 तक भी पहुंच गई थी। हाल ही में राज्य सरकार ने 7 राज्यों से आने वाले लोगों के लिए आरटीपीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट को अनिवार्य किया था, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही इसमें भी यू-टर्न ले लिया गया। कई जगहों पर मेकशिफ्ट अस्पताल बनाने का ऐलान हुआ था, लेकिन धरातल पर इसे सार्थक नहीं किया जा सका।
प्रदेश के लोगों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि चुनावी रैलियों में बंदिशें क्यों नहीं लगाई गई। निश्चित तौर पर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रदेश में कोविड से निपटने को लेकर सटीक प्लानिंग नहीं हो पा रही। सवाल इस बात पर भी उठता है कि क्या सरकार इस बात की भी समीक्षा कर रही है कि क्या एसओपी की पालना हो रही है या नहीं। इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति क्या है।
गौरतलब है कि मंगलवार को राज्य में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों का आंकड़ा 10 लाख पार कर गया था। राज्य में कोविड से मौत का आंकड़ा दोपहर तक 1141 का था। सवाल इस बात पर भी उठता है कि क्या सरकार के प्रयासों से नाखुश प्रदेशवासियों ने कोरोना के साथ जीना भी सीख लिया है। प्रश्न इस बात पर भी है कि जब अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड मौजूद हैं तो क्षमता के मुताबिक इनमें मरीजों को क्यों नहीं रखा जाता। गौरतलब है कि पाॅजिटिव पाए गए मरीजों को होम आइसोलेट होने की ही हिदायत दी जाती है।
कुल मिलाकर धरातल की सच्चाई ये है कि कोविड से निपटने के लिए सरकारी ढांचा ध्वस्त होता नजर आ रहा है। लिहाजा, सरकार को धरातल का फीडबैक ऐसे लोगों से लेना होगा, जो बेधड़क होकर बताएं। अगर इसे भी अफसरशाही पर छोड़ दिया गया तो निश्चित तौर पर फीडबैक सही नहीं आएगा।
एक उदाहरण…
एक व्यक्ति ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर एमबीएम न्यूज को बताया कि 5 अप्रैल को उनकी बुजुर्ग मां को पहले तो बगैर ऑक्सीजन स्पोर्ट के अस्पताल के गेट पर बिठा दिया गया। आपत्ति दर्ज की तो कोरोना संक्रमित बुजुर्ग को ऑक्सीजन स्पोर्ट दे दी गई। फिर कहा गया कि आईजीएमसी ले जाने के लिए सुबह 5 बजे एंबूलेंस आएगी। निजी एंबूलेंस से शिमला पहुंचे। 6 अप्रैल की शाम बुजुर्ग ने आईजीएमसी में दम तोड़ दिया। इस दौरान अस्पताल का पूरा आइसोलेशन वार्ड खाली पड़ा हुआ था।