हमीरपुर , 04 अप्रैल : हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में आज से ठीक 116 साल पहले एक ऐसा भूकंप आया था। जिसके नुकसान को सुनकर आज भी यहां के लोग सिहर उठते हैं। महज चंद सेकेंड की कंपन ने ही इस क्षेत्र के करीब 20 हजार लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। कई ऐतिहासिक भवनों का नामोनिशान मिट गया था। मौत के सन्नाटे व अनहोनी की आशंका के अलावा यहां कुछ नहीं बचा था। वहां बेहतर भविष्य की उम्मीद जगमगाती थी वहां उदासी में लिपटी तबाह ही तबाह नजर आ रही थी।
एक भी मकान ऐसा नहीं बचा जहां दोबारा जिंदगी शुरू करने की गुंजाइश बची हो। यहां पहली बार 7.8 मैग्नीच्यूड का भूकंप का झटका महसूस किया गया था। 4 अप्रैल 1905 को सुबह अभी यहां के लोग ढंग से जागे भी नहीं थे की सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर भूकंप के दो झटकों ने कांगड़ा को बुरी तरह से हिला डाला। उस समय यहां की आबादी भी कम थी और शहरों का आकार भी, इसके बावजूद उस समय भी इस भूकंप में मरने वालों का आंकड़ा 19 हजार 800 पहुंच गया। एक लाख भवन तबाह हो गए।
कई ऐतिहासिक इमारतें जमींदोज हो गई थी। भूकंप से कई जगह भूस्खलन हुए,चट्टानें गिर गईं। धर्मशाला की सारी की सारी इमारतें जमींदोज हो गई थीं। इस भूकंप ने कुल्लू-मनाली से लेकर शिमला, सिरमौर तक अपनी विनाशलीला दिखाई थी। इस भूकंप में यहां के पुराने मंदिर भी ध्वस्त हो गए थे। केवल बैजनाथ शिव मंदिर को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा था। कांगड़ा के इतिहास को बताने वाला कांगड़ा व नूरपुर के विशाल किले भी तबाह हो गए थे।
यहां प्रमुख नगर कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लोडगंज व पालमपुर पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इस भूकंप में कई अधिकारी की मौत का भी ग्रास बन गए थे। बचे हुए लोगों में पुलिस अधीक्षक मिस्टर होमन भी शामिल थे। उन्होंने विशेष वाहक के साथ मदद के लिए एक संदेश तत्कालीन अधिकारियों को भेजा था। उस वक्त कांगड़ा जालंधर डिवीजन का भाग था। यहां हुई तबाही को लेकर तुरंत लाहौर से मदद भेजी गई थी।
कांगड़ा के भूतपूर्व जिलाधीश मिस्टर यंग हस्बैंड लाहौर में कमिश्नर पद पर थे, वह सहायता पार्टी के साथ आए। सहायता सामान और अधिकारियों की एक विशेष रेलगाड़ी पठानकोट भेजी गई। इसी बीच बचे हुए भारतीय और यूरोपीय लोगों ने संगठित होकर राहत कार्य किया। मलबे के नीचे दबे लोगों को जीवित बचाया गया।
7 अप्रैल को शाहपुर तक समान पहुंच गया। पायनियर की 2 कंपनियों के अलावा अंबाला से पायनियर पर कंपनी के 200 व्यक्ति भी आ गए। कांगड़ा में सामान चोरी न हो, इसका ध्यान रखते हुए घुड़सवार सेना भी भेजी गई। डाक व्यवस्था 8 अप्रैल तक सड़कों का सुधार प्राथमिकता के आधार पर किया गया। वहीं मदद लेकर आए टांगे 13 अप्रैल को धर्मशाला पहुंच गए परंतु कोतवाली बाजार और सिविल लाइंस की 2 मील की दूरी तय करने में टांगों को 2 दिन का वक्त लगा। जानकारी के मुताबिक कांगड़ा के आसपास की सड़कों को गंभीर क्षति पहुंची थी और बनेर खड्ड के पुल के स्थान पर भी अस्थाई पुल बनाने में नौ-दिन का समय लगा था। कांगड़ा को पुन: पटरी पर लाने के लिए सालों लग गए थे।