नाहन, 21 मार्च : 1621 में बाबा बनवारी दास जी के आशीष से शहर की स्थापना हुई। यहां शहर की स्थापना का मकसद सिरमौर रियासत की राजधानी को बसाना था। हर कोई इस बात से बखूबी वाकिफ है कि शहर की पहचान तालाबों, बावड़ियों, मंदिरों, सैरगाहों से होती है। मगर शायद आपने यह नहीं सोचा होगा कि अगर आप शहर में लेफ्ट चल रहे हैं तो क्या होगा।
दरअसल, शहर की अधोसंरचना इस तरीके से बनाई गई है कि अगर लेफ्ट ही चलता रहेगा तो वो एक दूरी तय करने के बाद ठीक उसी जगह पहुंच जाएगा। मसलन, अगर बड़ा चैक से दिल्ली गेट होते हुए लेफ्ट चला जाए तो मालरोड़ के बाद गुन्नुघाट होते हुए ठीक उसी जगह पहुंचा जा सकता है, जहां से आप चले थे। हालांकि गलियों को लेकर भी ये बात सटीक साबित होती है।
आपको ये बताना भी जरूरी है कि इस बात को आप खुद महसूस करें, क्योंकि इसको लेकर इतिहास में कहीं कोई सटीक जानकारी नहीं है। वैसे इतना जरूर है कि शहर में विला राऊंड व अस्पताल राऊंड हैं, जिनकी सैरगाह के तौर पर पहचान होती है। घुमावदार सैरगाह आपको ठीक उसी जगह पर पहुंचा देती है, जहां से आप चलते हैं।
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एक पाठक ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा शहर की स्थापना के 400 साल पूरा होने पर प्रकाशित की जा रही विशेष सामग्री की प्रशंसा करते हुए ऐतिहासिक नगरी के घुमावदार होने की रोचक जानकारी भी दी। बता दें कि शहर की भूमिगत सीवरेज प्रणाली भी एक अलग पहचान रखती है। ऐसा भी दावा किया जाता रहा है कि शहर को इटली व यूरोप के देशों के आर्किटेक्ट पर विकसित किया गया था।
शहर को लेकर एक खास बात ये भी है कि ये शिवालिक पहाड़ी पर 932 मीटर ऊंची चोटी पर बसा हुआ है। मूसलाधार बारिश का पानी भी बह जाता है। तलहटी पर एक तरफ मारकंडा नदी है तो दूसरी तरफ जरजा नदी में ये पानी समा जाता है। यह अलग बात है कि दो दशकों में शहर के खूबसूरत चक्कों को हटाकर इंटर लाॅकिंग टाइलों का प्रचलन बढ़ा है। इस कारण अब कई स्थानों पर पानी इकट्ठा होना शुरू हो चुका है। खैर, शहर घुमावदार है।