नाहन, 6 मार्च : क्या डाॅ. वाईएस परमार मेडिकल काॅलेज (Dr. YS Parmar Medical College) में चिकित्सकों की मानवीय संवेदनाएं(Human Feelings) शून्य हो चुकी हैं। ये सवाल, संगड़ाह उपमंडल के रिमोट गांव(Remote Village) से नाहन पहुंची युवती राजेश्वरी की आपबीती के बाद उठा है। वीरवार को दिन भर युवती को रूम नंबर 204 व 208 के बीच दौड़ाया गया। मेडिसन (Medicine) विभाग का तर्क था कि ऑर्थो (Ortho) वाले चैक करेंगें।
वहीं, ऑर्थो वाले कहते रहे कि केस मेडिसन का है। बचपन से विकलांग 23 साल की युवती इस उम्मीद में नाहन पहुंची थी कि उसका मेडिकल बोर्ड (Medical Board) द्वारा विकलांगता प्रमाण पत्र (Disability) रिन्यू किया जाएगा। चूंकि जैसे-जैसे युवती की उम्र बढ़ रही है, वैसे-वैसे उसके पीठ (Back) में भी दर्द (Pain) बढ़ता जा रहा है।
23 साल की युवती की इस घटना से एमबीएम न्यूज नेटवर्क तो वाकिफ था ही, साथ ही मामला मुख्य चिकित्सा अधिकारी (Chief Medical Officer) डाॅ. केके पराशर के संज्ञान में भी था।
आप यह जानकर भी हैरान होंगे कि अपंग युवती सुबह साढ़े 9 बजे मेडिकल काॅलेज (Medical College) पहुंच गई थी। शाम 4 बजे तक भी उसे विकलांगता प्रमाण पत्र नहीं दिया गया। भरी आंखों (Teared Eyes) से वो अपनी पहचान की लड़की के कमरे में लौट आई। सुबह होते ही उसने अपने घर वापसी की बस पकड़ ली।
बता दें कि इस मामले को लेकर एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने ऑर्थो विभाग में डाॅ. नवीन गुप्ता से बात की थी। वो ये कहकर किनारा कर गए कि लड़की पोलियोग्रस्त (Polio) है, ये मेडिसन विभाग का केस है।
उधर, जब मेडिसन विभाग से पूछा गया तो उनका कहना था कि पोलियो पीड़िता का पहले से ही 40 फीसदी विकलांगता प्रमाणपत्र बना हुआ है, क्योंकि वो पीठ की हड्डी बढ़़ने की बात कर रही थी। लिहाजा, ऑर्थो विभाग (Ortho department) ने ही प्रमाणित (Certified) करना था।
मेडिकल बोर्ड की प्रभारी डाॅ. अनिकेता ने तर्क दिया कि युवती उनके पास 4 बजे पहुंची थी, तब तक सब जा चुके थे। आपके जहन में ये भी सवाल उठ रहा होगा कि आखिर अपंग युवती ने समूचे घटनाक्रम की शिकायत क्यों नहीं करवाई।
कमाल की बात ये भी थी कि मेडिकल बोर्ड (Medical board) के सदस्य ओपीडी में थे, लेकिन अपंगो (Handicap) की जांच के लिए कोई व्यवस्था (Arrangement) नहीं थी, यही कारण था कि राजेश्वरी को बार-बार डॉक्टरों तक पहुंचने के लिए भीड़ में वक्त लग रहा था।
आपको बता दें कि सिस्टम में विसंगतियों को लेकर हर कोई इस बात से वाकिफ है कि नतीजा सिफर ही रहता है। कोई कार्रवाई नहीं होगी।
सवाल इस बात पर भी उठता है कि जब विकलांगों के प्रमाणपत्र जारी किए जाने होते हैं तो तमाम चिकित्सक मेडिकल बोर्ड में एक साथ क्यों नहीं बैठते। जिला अस्पताल होने के दौरान मेडिकल बोर्ड में तमाम चिकित्सक एक ही जगह बैठकर विकलांगों की जांच करते थे।
स्वास्थ्य विभाग व मेडिकल काॅलेज प्रबंधन के बीच भी तनातनी चलती रहती है। इसका खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता हैै। हालांकि अपनी बात युवती ने सीधे तौर पर किसी से नहीं की, लेकिन करीबी ने बताया कि वो रात भर रोती रही। सुबह घर चली गई।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि अपंगों के साथ इस तरह का व्यवहार करने वाले चिकित्सक ये क्यों भूल जाते हैं कि उसकी जगह उनकी अपनी बेटी भी तो हो सकती थी। वो भूखी-प्यासी रहकर केवल अपना अपंगता प्रमाणपत्र लेने आई थी।
खैर, उम्मीद ये की जाने चाहिए कि आने वाले वक्त में चिकित्सकों द्वारा मानवीय संवेदनाओं के अनुरूप कार्रवाई की जाएगी, ताकि दूरदराज (Far flung Areas) से आने वाले गरीबों को लाभ (Benefit) मिल सके।
इसी बीच राजेश्वरी ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत में कहा कि उसे सदमे से उबरने में एक दिन का समय लगा। अब इस मामले में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज करवाएंगी। राजेश्वरी ने कहा कि वो वीरवार की आपबीती को उजगार करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी, क्योंकि मेडिकल बोर्ड भविष्य (Future) में खुन्नस ले सकता है, लेकिन सब बातो को नजरअंदाज कर इसे उजागर करने का निर्णय लिया है। ताकि दूर- दूर से नाहन पहुंचने वाले अपंग साथी इस तरह के व्यवहार को लेकर मानसिक (Mentally) तौर पर तैयार रहे।
दीगर है कि अस्पताल से राजेश्वरी की करीबी ने एमबीएम न्यूज़ को भी सम्पर्क किया था। इसके बाद मेडिकल अधीक्षक को दो कॉल्स की गई, लेकिन फ़ोन रिसीव नहीं किया गया।