शिमला, 04 मार्च : प्रदेश हाई कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि सरोगेसी (Surrogacy) से मां बनने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश पाने की हकदार है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने सुषमा देवी द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश का मतलब महिलाओं को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करवाना है। मातृत्व और बचपन दोनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मातृत्व अवकाश प्रदान करते समय न केवल माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के मुद्दों पर विचार किया जाता है, बल्कि दोनों के बीच स्नेह का बंधन बनाने के लिए छुट्टी प्रदान की जाती है।
सरोगेसी के माध्यम से बनी मां और एक प्राकृतिक माँ में भेद करने से नारीत्व का अपमान होगा। बच्चे के जन्म पर मातृत्व कभी खत्म नहीं होता है। इसी कारण सरोगेसी व्यवस्था के माध्यम से बच्चा पाने वाली एक माँ को मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता है। इन परिस्थितियों में एक महिला के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
जहां तक मातृत्व लाभ का संबंध है, केवल इस आधार पर कि उसने सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को प्राप्त किया है, एक नवजात बच्चे को दूसरों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता है। क्योंकि उसे लालन पालन की आवश्यकता है और यह सबसे महत्वपूर्ण अवधि है।
जिसके दौरान बच्चे को अपनी मां की देखभाल और ध्यान की आवश्यकता होती है। जीवन के पहले वर्ष में बच्चा बहुत कुछ सीखता है। इस दौरान दोनों में स्नेह का बंधन भी विकसित करना होगा।