नाहन, 2 मार्च : संभव है, देवभूमि हिमाचल में कई ऐसे धार्मिक स्थल होंगे, जहां धर्मों में एकता की मिसाल मिलती होगी। इस फेहरिस्त में ऐतिहासिक पक्का टैंक के किनारे स्थित हजरत लखदाता पीर साहब की दरगाह भी शामिल है। 200 से भी अधिक साल से इस दरगाह पर शीश नवाजे ने श्रद्धालुओं की मुराद तो पूरी होती ही आई है। मगर अनोखी बात यह है कि दर्शन अभिलाषियों की कतार में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई होते हैं।
लखदाता पीर के समीप से गुजरने वालों को एक अलग ही ऊर्जा का अहसास होता है। ऐसी आस्था है कि बाबा के समक्ष शीश नवाजने से चर्म रोग का निवारण हो जाता है। मस्सों के उपचार के लिए भी बाबा से प्रार्थना की जाती है। इसके लिए गुड व आटे से बने रोट को दरगाह में चढ़ाने की परंपरा भी रही है।
करीब-करीब एक-डेढ़ साल पहले नगर परिषद के 150 साल पूरे होने पर टूरिज्म महकमे ने शहर के हैरिटेज भवनों व विरासतों का रिकाॅर्ड खंगाला था। इसमें लखदाता पीर की मजार को लगभग 250 साल पुराना बताया गया था। ऐसा भी माना जाता है कि लखदाता पीर साहब गुग्गा पीर साहब के दुधमुंहे भाई थे। दोनों ने एक ही मां का दूध पिया है।
लखदाता पीर की दरगाह की नाहन में स्थापना को लेकर इतिहासकारों में मामूली सा इत्तफाक है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि निर्माण को लेकर हरेक पक्ष इस बात को लेकर सहमत है कि मजार का निर्माण शासक फतेह प्रकाश की पत्नी कलहूरी ने किया था।
एक पक्ष का तर्क…
एक पक्ष के मुताबिक तत्कालीन शासक फतेह प्रकाश की पत्नी कलहूरी ने लखदाता पीर की दरगाह का निर्माण करवाया था। ऐसा उन्होंने अपने बेटे को स्वस्थ करने की कामना के मकसद से किया था। लेकिन इसके निर्माण के लिए ईंटों को मुल्तान (अब पाकिस्तान में) से नहीं लाया गया था। बल्कि ऐसा रानी कलहूरी ने एक फकीर के कहने पर किया था। चूंकि फतेह प्रकाश ने 1815 से 1850 के बीच शासन किया, अगर इस तर्क को सही माना जाए तो दरगाह का निर्माण 171-206 साल पहले हुआ।
दूसरा पक्ष…
इसके मुताबिक शासक कर्म प्रकाश प्रथम सभी धर्मों के प्रति अटूट आस्था रखते थे। दिली इच्छा थी कि पीरजादों का परिवार भी यहां बसे। 1793 से 1803 तक शासन किया। इसके बाद एक साल के लिए अहलकारों ने रतन प्रकाश की गद्दी पर ताजपोशी की। 1804 से 1815 तक कर्म प्रकाश को दोबारा राज सिंहासन हासिल हुआ। कर्म प्रकाश के शासन के दौरान मुल्तान से लाई गई ईंटों को पक्का तालाब के किनारे दबा दिया गया। अगले दिन मजार बन चुकी थी।
अगर कर्म प्रकाश के वक्त में लखदाता पीर की स्थापना हुई तो इसका इतिहास करीब-करीब 208 साल पुराना है। ऐसा भी माना जाता है कि शासन के दो राजकुमारों ने मजार का मजाक भी उड़ाया था। इसके बाद दोनों को घोड़ों से गिरने पर चोटें आई थी। इसके बाद उनकी मां ने पीर से माफी मांगी थी।
इतना तय…
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने लखदाता पीर साहब की मजार के निर्माण को लेकर कई पक्षों से बात की। इतिहासकार कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना था कि फतेह प्रकाश की पत्नी ने इसका निर्माण करवाया था।
उधर, मजार की देखभाल करती आ रही पीढ़ियों के मौजूदा सदस्य गुलशन अहमद का कहना था कि वो यही जानते आए हैं कि लगभग 250 साल पहले निर्माण हुआ था। कुल मिलाकर इतना तय है कि शहर की ये अनमोल धरोहर 200 से 250 साल पहले बनी थी। निर्माण को लेकर सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है।