हमीरपुर, 28 फरवरी : प्राकृतिक रूप से हमें कई सब्जियां व फल फूल मिले हैं जो स्वादिष्ट के साथ-साथ स्वस्थ वर्धक भी होते हैं। इन्हीं में एक शुनणा के फूल हैं, जो बाजार में इन दिनों हाथों-हाथ बिक रहे हैं। लेकिन जायकेदार व निरोगी इन फूलों की चटनी की महक शुनणा गरीब तबके के लिए दूर होती जा रही है, जो यहां के इलाके में पाए जाते हैं। हाथों-हाथ बिक रहा शुनणा 200 प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रहा है। यह केवल दो-तीन माह पेड़ो पर पाया जाता है, इसका अपना ही महत्व है।
पहाड़ी भाषा में इसे हर कोई शुनणा ही कहते हैं। लेकिन गरीब तबके के लिए कभी यूं ही मुफ्त में मिलने वाले शुनणा की महक गरीब तबके के लिए दूर होती जा रही है। बुजुर्गों से लेकर बड़ों नौजवानों तक शुनणा का महत्व छिपा नहीं है। हालांकि नई पीढ़ी महत्व को लेकर अनजान हैं। लेकिन पुराने बुजुर्ग आज भी इसकी चटनी घर में बनाकर इसके परिवार संग जायका लेते हैं।
खासकर शुनणा की चटनी चने माह दाल के साथ हो तो इसके खाने के चटकारे अलग ही हैं। शुनणा के फूल की चटनी मात्र खटाई में नमक ही डाला जाता है। लेकिन सबसे बड़ा महत्वपूर्ण पहलू है कि नमक खाने के समय ही डाला जाता है। इससे पूर्व नमक डालने से स्वाद कड़वा हो जाता है। जहां यह जायकेदार ही होती है वही यह पेट की बीमारियों के भी निरोगी औषधि के तौर पर माना जाता है। फूल पक जाने के बाद इसकी सब्जी भी बनाई जाती है, इसका अचार भी बनाया जाता है।
यह दिसंबर से फरवरी माह तक जंगलों के पेड़ो में पाया जाता है। जहां पर गर्म मौसम हो खासकर इस इलाके में पाए जाने वाले इस शुनणा के फूल पेड़ पर लगते हैं, जिन्हें तोड़ना भी खास आसान नहीं होता है। पेड़ पर चढ़ना खतरे से खाली नहीं होता है। इसकी लकड़ी बहुत ही कच्ची होती है। किसी समय जब महँगाई का दौर नहीं था। खाने-पीने को लेकर रेडीमेड फास्ट फूड नहीं चलता था, तो ऐसे ही व्यंजनों का स्वाद लिया जाता था। बुजुर्ग कुशल पुवारी ने बताया कि शुनणा पेट की बीमारियों के लिए बहुत ही अच्छा होता है। इन दिनों ही पाया जाता है इसकी चटनी के साथ अचार व सब्जी भी बनती है।
सब्जी विक्रेता श्रवण कुमार श्यामलाल ने बताया कि शुनणा की डिमांड बहुत है और इसे इसी इलाके में पाया जाता है।