नाहन, 17 फरवरी : इस बात की ठोस जानकारी नहीं है, गिरि नदी में कब रियासत गर्क हुई थी, अलबत्ता यह जरूर माना जाता है कि दसवीं सदी के मध्य में ऐसा हुआ था। दिवंगत इतिहासकार कंवर रंजौर सिंह ने भी अपनी पुस्तक तारीख-ए-सिरमौर में सही वक्त का पता न होने की बात लिखी है। इस बात के साक्ष्य जरूर उपलब्ध होते हैं कि रियासत के गर्क होने के बाद होशनाक राय भाट को जैसलमेर भेजा गया था, ताकि वो वहां से राजकुमार को शासक के तौर पर लेकर आए।
जैसलमेर के शासक शालिवाहन द्वितीय ने अनुरोध पर अपने तीसरे बेटे हासू को सिरमौर जाने का आदेश दिया था। मगर राजकुमार हासू की सीमा पर मौत हो गई। पत्नी गर्भवती थी। पोका नामक स्थान पर पलाश (ढाक) के पेड़ के नीचे एक पुत्र को जन्म दिया। इस कारण रियासत के वंश को पलासिया कहते हैैं। ऐसी भी धारणा है कि जन्म के वक्त ढाक प्रकाश की रक्षा नाग देवता ने की थी। यही कारण है कि इसी ढाक के पेड़ की लकड़ियों से कुछ सालों बाद चार नाग देवता की मूर्तियां बनाई गई। 1621 में जब रियासत की राजधानी नाहन बनी तो पटेत परिवार ही इन मूर्तियों को लेकर नाहन आ गया।
ऐसा भी बताया जाता है कि कच्चा टैंक में नाग देवता के मंदिर में इन मूर्तियों को स्थापित किया गया था, लेकिन गोरखा युद्ध के वक्त मूर्तियों के बेशकीमती आभूषण चोरी कर लिए गए। तब से ये मूर्तिंया पटेत परिवार के घर में ही चांदी के पालने में पुजी जाती हैं। जिन्हें हर साल नाग पंचमी के मौके पर मंदिर में भी दर्शनार्थ हेतु रखा जाता है। राज परिवार की महिलाओं द्वारा इसकी पूजा-अर्चना की जाती रही। नाग देवता से जुड़ी एक दंत कथा भी है। इसके मुताबिक मौजूदा राज परिवार के प्रथम पूर्वज (टिक्का साहब)के साथ एक सांप ने भी जन्म लिया था। मगर दिवंगत इतिहासकार कंवर रंजौर सिंह ने इससे इत्तफाक नहीं रखा है।
सिरमौर रियासत के गर्क होने की वजह नटनी का श्राप नही….जल प्रलय!
उन्होंने अपनी पुस्तक में जिक्र किया है कि मनुष्य के साथ सांप का पैदा होना संभव नहीं है। जहां प्रथम पूर्वज की उत्पत्ति हुई, वहां नाग देवता का मंदिर होगा। लोगों ने टिक्का साहब की उत्पत्ति को नाग देवता की कृपा ही समझा होगा। नाग देवता का एक प्राचीन मंदिर आज भी सिरमौरी ताल के निकट सालवाला में मौजूद है। नागदेवता की पूजा आज भी सिरमौर रियासत के वंशजों में होती है। यह भी साफ है कि गिरि नदी की बाढ़ में नष्ट हुआ राज परिवार भी जैसलमेर से ही आया था।
पटेत परिवार के सदस्य मनोज पटेत का कहना है कि उनका परिवार भी जैसलमेर से ही आया था। इस समय 76वीं पीढ़ी नाग देवता की पूजा-अर्चना करती है। उनका कहना था कि संरक्षित मूर्तियों के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। अलबत्ता, यह माना जा सकता है कि ये मूर्तियां 700-800 साल पुरानी हैं।
उधर, इतिहासकार कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना है कि रियासत के गर्क होने के बाद दूसरी वंशावली 1195 में शुरू हुई। इसके आधार पर यह माना जा सकता है कि ढाक प्रकाश के जन्म के कुछ सालों बाद ढाक के पेड़ की लकड़ी से काष्ठ की मूर्तियों का निर्माण हुआ होगा।