नाहन, 16 फरवरी : शहर के चौगान मैदान के समीप लिटन मैमोरियल की पहचान दूर-दूर तक है। ये एक लैंड मार्क होने के साथ-साथ शहर की अनूठी धरोहर भी है। इसके निर्माण के पीछे एक रोचक तथ्य है। दरअसल, 1877 में क्वीन विक्टोरिया ने सिरमौर रियासत के शासक को केसर-ए-हिन्द की उपाधि से नवाजा था। इसी के चलते वायसराॅय ऑफ इंडिया लार्ड लिटन ने शासक को दिल्ली दरबार आने का निमंत्रण दिया था। तत्कालीन शासक शमशेर प्रकाश अपने प्रिय हाथी बृजराज के अलावा 20 अन्य हाथियों के साथ दिल्ली दरबार पहुंचे थे।
शासक को क्वीन विक्टोरिया की स्तुति पर केसीएसआई (केसर-ए-हिन्द) उपाधि से अलंकृत किया गया। समारोह से लौटते वक्त महाराज शमशेर प्रकाश ने लार्ड लिटन को नाहन आने का न्यौता दिया। इस न्यौते को स्वीकार करते हुए लार्ड लिटन नाहन आए। उनके स्वागत के लिए शासक द्वारा 1878 में लिटन मैमोरियल का निर्माण करवाया गया। वो देहरादून से होते हुए नाहन पहुंचे थे। इतिहास के मुताबिक वायसराॅय ऑफ इंडिया ने वापस जाते वक्त क्यार दून के जंगल में एक टाइगर को भी मारा था। ऐतिहासिक शहर जहां 400 साल पूरे कर रहा है, वहीं इस मैमोरियल की उम्र 142 बरस की हो चुकी है। हालांकि इस मैमोरियल को अधिकांश लोग देहली गेट भी पुकारते हैं, मगर इसको लेकर सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ।
कमाल की बात ये भी है कि 142 साल की उम्र हो जाने के बावजूद मैमोरियल शानदार तरीके से खड़ा है। इसकी टाॅप छत तक पहुंचने के लिए गोल सीढ़ियां उस जमाने की सिविल इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल भी हैं। हालांकि इस मैमोरियल में आम लोगों के दाखिल होने पर प्रतिबंध है, लेकिन जो लोग चढ़ते हैं, वो पाते हैं कि गोल सीढ़ियों को इतने बेहतरीन तरीके से बनाया गया है कि सिर कम जगह होने के बावजूद भी छत से नहीं टकराता है। मैमोरियल की अंतिम छत तक चढ़ने के लिए एक जगह लकड़ी की सीढ़ी है।