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400 बरस का नाहन, जानिए हाथी की कब्र से जुड़ा रोचक इतिहास…कहां से आया था बृजराज

February 14, 2021 by MBM News Network

नाहन, 14 फरवरी : 400 बरस का हो चुका नाहन शहर अपने इतिहास के पन्नों में कई रोचक जानकारी भी समेटे है। शिमला रोड़ पर हाथी की कब्र से हर कोई वाकिफ है। कहते हैं, यहां हर मनोकामना पूरी होती है। 400 बरस का नाहन, जानिए हाथी की कब्र से जुड़ा रोचक इतिहास...कहां से आया था बृजराज

शायद ही कोई इस बात को जानता होगा कि बृजराज (हाथी) कब व कैसे नाहन आया था। दरअसल,  1858 में तत्कालीन शासक शमशेर प्रकाश का विवाह बाल्यकाल में हो गया था। शिमला की क्योंथल रियासत के राजा महेंद्र सेन की दोनों बेटियों से शादी हुई। बारात जुन्गा गई थी। छोटी रानी जल्द ही दुनिया को छोड़ गई। बड़ी रानी की कोख से पैदा बेटा-बेटी कुछ समय बाद ही स्वर्ग सिधार गए। इसके पश्चात राजा शमशेर प्रकाश ने तीर्थ यात्रा की योजना बनाई।

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शासक कंवर सुरजन सिंह व वीर सिंह के साथ विक्रमी सम्वत् 1915 (1858 ई.) में तीर्थ यात्रा पर रवाना हुए। इस दौरान मथुरा, प्रयाग व पटना जी पहुंचे। कोलकात्ता होते हुए श्री जगन्नाथ की यात्रा भी की। वापसी में राजा शमशेर प्रकाश ने मथुरा से एक हाथी खरीदा। य़द्यपि यह हाथी उस समय डील डौल में कुछ बड़ा नहीं था, लेकिन बाद में वो बहुत ही खूबसूरत हुआ। इस हाथी का नाम बृजराज रखा गया, इसका अर्थ है मथुरा के हाथियों में सबसे बड़ा हाथी। राजा अपने हाथी को लेकर सकुशल नाहन आ गए। वापस पहुंचने पर रियासत में जमकर खुशियां मनाई गई, क्योंकि यात्रा दुर्गम व खतरों से भरी समझी जाती थी। रास्ते में डाकू-लुटेरों का भय भी रहता था। बृजराज से शासक को बहुत मोहब्बत थी।

शाही महल के दरवाजे के निकट ही एक पक्का हाथी घर भी बनवाया था, वो उसे दिन में एक बार अवश्य मिलने जाया करते थे। हाथी भी राजा का आदेश मानता था। विशेषकर मस्ती की हालत में हाथी अपने महावत के आदेश की परवाह नहीं करता था, मगर राजा के आदेश को कभी नहीं टालता था। हाथी का रंग भूरा व कद 10 फुट 5 इंच था। कद-काठी मुनासिब व सुंदर थी। बृजराज साहसी था। जंगली हाथी से मुकाबला करने में हिम्मत दिखलाता था। इतिहास के मुताबिक राजा शमशेर प्रकाश ने बृजराज को मथुरा के सेठ लक्ष्मी चंद से खरीदा था।

400 बरस का नाहन, जानिए हाथी की कब्र से जुड़ा रोचक इतिहास...कहां से आया था बृजराज
वर्तमान में हाथी की कब्र, साथ में हाथी के पांवनुमा पेड़

इतिहासकार कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि बृजराज शासक का काफी प्रिय था। एक बार बीमार हुआ था तो उसके महावत ने दवा की ओवरडोज दे दी थी। जिस कारण उसकी मौत हो गई। उनका कहना था कि उस वक्त दवा के रूप में ठंडा मसाला दिया जाता था। उनका कहना था कि बृजराज की मौत की सटीक तिथि को जानने के लिए इतिहास को बारीकी से खंगाल कर ही कुछ बता सकते हैं। अलबत्ता, इतना जरूर है कि 1890 के आसपास बृजराज ने दुनिया को अलविदा कहा था। कंवर अजय बहादुर सिंह बताते हैं कि शासक बृजराज के निधन से इतने व्यथित थे कि वो अपने बेटे सुरेंद्र प्रकाश की शादी में भी बेहद ही मायूस चेहरे से बारात में गए थे।

ऐसी भी धारणा…
हालांकि इतिहास में दर्ज नहीं है, लेकिन ऐसा भी माना जाता है कि जब बृजराज को मौजूदा शिमला मार्ग पर दफनाया गया था, उस समय सिंबल का पेड़ भी रोपित किया गया था। जो आज भी मौजूद है। इसे देखकर इस कारण आश्चर्यचकित हो जाता है, क्योंकि पेड़ के कई हिस्से हाथी के अंगों की तरह नजर आते हैं।

Filed Under: मुख्य समाचार, सिरमौर, हिमाचल प्रदेश Tagged With: Himachal News In Hindi, Sirmour news



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