शिमला, 31 जनवरी : देवभूमि हिमाचल के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला में कार्यरत इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिखा सूद द्वारा ऐसे मरीजों का उपचार किया जा रहा है, जिन्हें उपचार के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता था।
चंबा जिला के 23 वर्षीय विनोद का परिवार डॉ. शिखा सूद का आभार जता रहा है, क्योंकि बड़ी बीमारी का उपचार आईजीएमसी में किया गया है। 23 वर्षीय विनोद को किडनी फेलियर के चलते सप्ताह में दो बार इलाज के लिए आईजीएमसी(IGMC) आना पड़ता था।
दो घंटे के लंबे आपरेशन में मरीज पूरी तरह होश में था तथा अपना आपरेशन होते हुए स्वयं देख व सुन रहा था। अत्यधिक खून नसों में जम जाने के कारण यह जटिल आपरेशन किया गया तथा आईजीएमसी ही नहीं बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश में पहली बार किया गया।
हर हफ्ते दो बार डायलासिस (Dialysis) किया जाता है। डायलासिस के लिए पहले उसकी बाजूओं (Arms) में आर्टियोवीनस फिस्चुला बनाए गए थे, परंतु वे हायपर कोएग्यूलेबल स्टेट होने की वजह से बंद होे चुके थे। लिहाजा गले की नसों में कैथिटर डाले जा चुके थे। जहां से उसका डायलासिस किया जाता था। परंतु गले के कैथिटर दो बार बाहर निकल चुके थे। मरीज का जीवन अब इस बात पर निर्भर था कि उसके गले में तीसरी बार कैथिटर डाला जाए ताकि वह जिंदा रह पाए और किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney Transplant) का इंतजार कर सके जो कि उसे जीवनदान दे।
नेफ्रोलॉजी विभाग में कार्यरत डॉ. अश्वनी ने मरीज को इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट डॉ. शिखा सूद के पास परमा कैथिटर डालने के लिए रेफर किया। परंतु डॉ. शिखा ने मरीज के गले का डॉप्लर किया तो पाया कि किडनी फेलियर(Kidney Failure) से हायपर कोएग्यूलेबल स्टेट होने की वजह से मरीज की गर्दन की दाएं-बाएं तरफ की नसें, दोनों बाजूओं की नसें बंद पड़ी थीं तथा खून का दौरा कोलेट्रल वेन से हो रहा था। समस्या गंभीर थी। जवान मरीज की जान बचाना जरूरी थी। डॉ. शिखा ने जटिल आपरेशन (Rare Operation) करने का निर्णय लिया।
वायर्स और कैथिटर को अत्यधिक सावधानी से दिल से गुजारते हुए, डॉ. सूद ने बड़ी ही सावधानी से दिल के पास वाली नसों में से जमे हुए खून को निकाला तथा बैलूनिंग कर सिकुड़ी पड़ी नसों को खोल डाला।
कैथिटर डालकर मरीज को नवजीवन(New life) प्रदान किया। अगले दिन से डायलासिस करवाकर विनोद स्वस्थ है और किडनी ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहा है। डॉ. शिखा सूद ने बताया कि थोड़ी सी चूक (Negligence) मरीज की आपरेशन(Operation) टेबल पर जान भी ले सकती थी क्योंकि जमा हुआ खून यदि दिल से गुजरते हुए पल्मनरी थ्रोम्बोलिज्म कर सकता था, सावधानी से इस जटिल इंटरवेंशन को करते हुए उन्होंने न केवल मरीज की जान बचाई बल्कि हिमाचल में हो रही इंटरवेंशनस को एक नए दौर में भी पहुंचा दिया। इस इंटरवेंशनस का श्रेय वे अपने एम्स नई दिल्ली में कार्यरत एचओडी एवं प्रोफेसर डॉ. शिवानंदन गमनगट्टी को देती हैं, जिन्होंने उन्हें फोन पर राय दी तथा इस जटिल इंटरवेंशन को करने की सलाह दी।
यहां यह बताना आवश्यक है कि डॉ. शिखा ने पिछले छह माह में कोविड के रहते हुए भी अपनी जान हथेली पर रखकर कई तरह के नए-नए इंटरवेंशनस किए हैं जिससे प्रदेश के कई हजारों मरीजों को इलाज संभव हो पाया है तथा उनमें जीवन की एक नई किरण जागृत हुई है।