नाहन, 27 जनवरी : राजगढ़ उपमंडल की भानत पंचायत के सेर मनोन गांव के लाल मेजर हरीश ठाकुर ने अपनी काबलियत का जबरदस्त डंका बजाया है। साथ ही युवाओं के लिए एक प्रेरणा भी बने हैं। सोचिए, गणतंत्र दिवस के मौके पर परेड का सदस्य बनना ही कितना गौरवशाली होता है। वहीं अगर एक युवक अपनी पूरी पलटन का ही नेतृत्व करे तो उस उपलब्धि को निश्चित तौर पर दुर्लभ ही माना जाएगा। राजपथ की परेड में सेना की 6 बटालियन को ही मौका मिलता है। यानि दोबारा पारी के लिए पलटन को लंबा इंतजार करना पड़ता है। अब अगली बार जैक राइफल रेजीमेंट की टुकड़ी 2027 में ही राजपथ पर नजर आएगी।
जैक राइफल रेजीमेंट का गठन महाराजा गुलाब सिंह ने 1820 में किया था। जनवरी 1957 में भारतीय सेना में इसका विलय हो गया। पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि सेना के किसी दस्ते की कमांड संभालने वाले मेजर हरीश ठाकुर पहले सिरमौरी हैं। सीडीएस की परीक्षा को 2009 में उत्तीर्ण करने के बाद 12 जून 2010 को जैक राइफल रेजीमेंट में बतौर लेफ्टिनेंट अपना कैरियर शुरू किया था। राजगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद सोलन से ग्रैजुएशन की। साथ ही नाहन में दो वर्षीय जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) का कोर्स भी किया। आर्मी डे की परेड में भी मेजर हरीश ठाकुर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। दस्ते का नेतृत्व करना छोटी बात नहीं है।
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समूचे देश में चुनिंदा सैन्य अधिकारियों को ही ऐसा अवसर केवल अपनी काबलियत के दम पर ही मिलता है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में मेजर हरीश ठाकुर ने कहा कि जीवन में ये पल बेहद ही अनमोल रहे, क्योंकि लाइफ टाइम अचीवमेंट ही है। एलएसी पर अपनी जांबांजी का जलवा दिखा चुके मेजर कहते हैं कि वो युवाओं को सेना की तरफ ले जाने के लिए हर कदम पर मदद करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि अगर आज वो सैन्य अधिकारी नहीं होते तो निश्चित तौर पर ही एक जेबीटी होते। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता के अलावा अपनी पलटन को दिया है। मेजर ने कहा कि अगर पलटन मौका नहीं देती तो ऐसे गौरव के पल नहीं आते।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अटल टनल के लोकापर्ण के दौरान भी पांवटा साहिब के रहने वाले कर्नल हरीश खुराना ने साउथ पोर्टल पर अपनी प्रतिभा को साबित किया था। माता-पिता के अलावा मौसी व पिता तुल्य चाचा को भी अपनी सफलता का श्रेय देते हैं।
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तब से था लक्ष्य….
ग्रैजुएशन के दौरान मेजर हरीश ठाकुर एनसीसी का एक खास हिस्सा थे। प्रतिभा के दम पर 2005 की आरडी परेड के लिए कैंप में चयन हुआ था। लेकिन टुकड़ी का हिस्सा नहीं बन पाए थे। तब से ही मन में आरडी परेड का हिस्सा बनने का सपना देखा था। मगर इस बात का कतई भी उस समय इल्म नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब राजपथ की आरडी परेड में अपने रेजीमेंट के दस्ते का नेतृत्व ही करेंगे। लिहाजा, साबित होता है कि परिश्रम, लगन व लक्ष्य के बूते उपलब्धि को अर्जित किया जा सकता है।