सोलन, 18 जनवरी : हिमाचल पुलिस में धाकड़ व दबंग पहचान रखने वाली रिटायर्ड डीएसपी शकुंतला शर्मा अर्की की धुंदन पंचायत में रिकाॅर्ड तोड़ जीत हासिल कर सरपंच बनी हैं। 1977 में ऐसे वक्त पर पुलिस में अपनी सेवाएं शुरू की थी, जब बेटियों के लिए पुलिस के कैरियर को सपने में भी नहीं सोचा जाता था। 2007 में पुलिस महकमे में बेशुमार उपलब्धियों पर सेवानिवृत डीएसपी शकुंतला शर्मा को राष्ट्रपति पुलिस मैडल से भी अलंकृत किया गया था। हालांकि सेवाओं के दौरान ऐसे कई आपराधिक मामलों को क्रैक किया, जिन्हें आज भी याद किया जाता है। लेकिन इसमें न्यू शिमला में तेजाब कांड, डे चोरों व इंटरस्टेट अपराधियों को गिरफ्तार करने के मामले चंद हैं। वो नशे के सौदागरों के खिलाफ भी खौफ बनती थी।
इस समय तकनीक उपलब्ध है, लेकिन जिस समय वो चरस, चिट्टा व शराब के तस्करों पर नकेल कसती थी, जब साधन सीमित थे। स्पष्ट शब्दों में कहें तो नशे के सौदागरों के खिलाफ खौफ थी। जनहित में सिस्टम से टकराने में भी नहीं हिचकिचाती थी। 2015 में वो डीएसपी के पद से रिटायर्ड हुई। इसके बाद अपने घरेलू जीवन में ही खुद को व्यस्त रखा हुआ था। धाकड़ पुलिस अधिकारी ने जीत भी धाकड़ हासिल की है। पंचायत प्रधान के पद के लिए 1044 वोट हासिल किए, जबकि निकटतम प्रत्याशी को 477 वोट पडे़। इसके अलावा पांच प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।
हर किसी के जहन में ये सवाल उठ रहा था कि दबंग पुलिस अधिकारी के तौर पर पहचान रखने वाली शकुंतला ने अचानक ही पंचायत का सरपंच बनने का फैसला क्यों ले लिया। इसको लेकर एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने उनसे सीधी बात की।
सवाल : पंचायत प्रधान का चुनाव लड़ने का फैसला क्यों लिया?
जवाब : दरअसल, पंचायत महिला के लिए आरक्षित हुई। पंचायत के युवाओं ने चुनाव लड़ने का दबाव बनाया। युवाओं के आग्रह व गुरु के आदेश पर फैसला ले लिया। हर कोई यही चाहता था कि जिस तरीके से पुलिस में रहकर समाज सुधार में भूमिका निभाई है, वैसे ही पंचायत में भी जिम्मेदारी का निर्वहन करें।
सवाल : चुनाव लड़ने का क्या अनुभव रहा?
जवाब : एक तरफा जीत मिलने से उत्साहित हूं, लेकिन तजुर्बा हुआ है कि आज भी मतों को लेकर समाज को जात-पात में बांट दिया जाता है। इसके सख्त खिलाफ हूं।
सवाल : क्या प्राथमिकता रहेगी?
जवाब : देखिए, जहां तक पुलिस की कार्यशैली का सवाल है तो बारीकी से हर बात को जानती हूं। पंचायत को एक आदर्श पंचायत बनाना ही मुख्य ध्येय है। पंचायत ऐसी होनी चाहिए, जिसे पूरा देश रोल माॅडल मानें।
सवाल : 70 के दशक में पुलिस में भर्ती होने का साहस कहां से आया?
जवाब : ये ठीक बात है कि उस जमाने में कोई भी अपनी बेटी को पुलिस में भर्ती करने को तैयार नहीं होता था। खाकी पहनने का जज्बा था। परिवार भी सहमत हो गया। 38 साल की सेवाओं के दौरान कई अनुभव रहे। ऐसा भी महसूस किया कि जब आप सही होते हो तो अपने शीर्ष अधिकारी से भी असहमत होना पड़ता है।
सवाल : भविष्य के लिए शुभकामनाएं?
जवाब : धन्यवाद, अपनी पंचायत के लिए कुछ कर पाऊंगी तो आपसे फिर बात करूंगी।