कुल्लू/राकेश शर्मा, 4 दिसम्बर : कुल्लू व मंडी की सरहद पर स्थित चतुर्भुज बाड़ी दुर्गा का मंदिर बहुत प्राचीन है। आनी मुख्यालय से लभगभ 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता के अधीन आने वाले दोनों जिलों के क्षेत्र की जनता की माता कुलदेवी है। इसके अलावा जिला शिमला के लोगों की भी बाड़ी दुर्गा के प्रति असीम आस्था है।
एनएच-305 के किनारे बसा यह मंदिर अपनी अद्वतीय सुंदरता के लिए सुप्रसिद्ध है। पीपल के विशालकाय वृक्षों के बीच बसे प्राचीन शैली के इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है। देवी माता बाड़ी का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मन्दिर के भवन का निर्माण प्रदेश के नामी कारगीरों ने तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद किया। जिसमें जिला कुल्लू व मंडी के वासियों का भी बहुमूल्य सहयोग रहा। आज आम जनता के श्रम और धन दान की वजह से माता बाड़ी दुर्गा का नया मन्दिर भवन बना है, जो प्राचीन शैली में ही लकडी से खूबसूरत नक्काशी करके निर्मित किया गया है।
नए मन्दिर भवन की प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान भव्य 18 अष्टादश महापुराण का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्र के अति प्रतिष्ठित 15 देवी-देवताओं संग श्रदालुओं ने भाग लिया था।
क्या है मान्यता…
जानकारी के मुताबिक यह घटना उस समय से संबंधित है, जब निरमंड पर राणाओं का शासन था। उन राणाओं में से एक निरमंड से 4 किलोमीटर दूर गांव में रहता था। वह देवी अंबिका का पूर्ण भक्त था। एक बार जब वह देवी की प्रार्थना कर रहा था तो उसकी गोद में एक बालिका आई। उसने बताया कि वह स्वर्ग से आती है। राणा ने अंबिका की उपेक्षा करते हुए उसकी पूजा शुरू कर दी। इस पर देवी अंबिका क्रोधित हो गई और उन्होंने राणा को मार डाला। लड़की फिर बाड़ी के उस गांव में पहुंची, जहां एक दुष्ट मुवान रहता था। लड़की ने उसे खत्म कर दिया। ग्रामीणों ने उसकी शक्ति को जानकर उसे अपने देवी के रूप में स्थापित किया और एक मंदिर का निर्माण किया। उसका नाम बदसाना देवी रखा गया है।
देवी के पास अष्टधातु और चांदी के नौ मोहरें हैं। मुख्य मुहूर्त का नाम देवी दुर्गा बाड़ी है। बाड़ी माता अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। यहां हर धार्मिक अवसरों पर भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है।