नाहन, 16 नवंबर: बहुचर्चित फिल्म “सारांश” में अभिनेता अनुपम खेर एक मार्मिक दृश्य में पुलिस कमीशनर से पूछते हैं कि “क्या अब मुझे बेटे की अस्थियां पाने के लिए भी रिश्वत देनी पडेगी”..! ये दृश्य आंखें भिगो देने के लिए काफी था, लेकिन क्या रियल लाइफ(Real Life) में भी इस तरह की बात हो सकती है। इंसानियत इस स्तर पर मर चुकी है कि लाचार व बेबस (Helpless) तीमारदारों से इलाज की आड़ में मोटी रकम ऐंठी जाती है।
नाहन विकास खंड के कून गांव में एक परिवार के साथ ऐसा बीता है। अगर परिवार की मानें तो कोरोना संक्रमित को यमुनानगर से नाहन तक लाने के लिए उनसे 16,200 रुपए एंबुलेंस के लिए वसूले गए। 60 किलोमीटर एंबुलेंस सेवा के लिए 2 से 3 हजार ही लिए जाने चाहिए थे।
दीपावली पर शिक्षा विभाग से रिटायर्ड टीचर मोहन लाल(59) को मेडिकल काॅलेज(Medical College) से रैफर किया गया तो परिवार को चंडीगढ व शिमला में सरकारी व निजी अस्पतालों में बैड उपलब्ध न होने की बात कही गई। इसी बीच यमुनानगर के कपूर अस्पताल (Kapoor Hospital) ने हामी भर दी।
रैडक्राॅस सोसायटी की मदद से नाजुक हालत में मरीज(Patients) को अस्पताल पहुंचा दिया गया। वहां पहुंचते ही मरीज को गुलाटी अस्पताल(Gulati Hospital) ले जाने को कहा गया। चैकअप से पहले ही 50 हजार रुपए की मांग हुई। जैसे-तैसे दीपावली के दिन परिवार ने 20 हजार का इंतजाम कर दिया। रविवार सुबह 20 हजार की अदायगी ओर कर दी गई।
मरीज के भतीजे हरीश कुमार व हेमंत की मानें तो मरीज चलकर गया था। लेकिन कुछ समय बाद हालत नाजुक होने की बात बताकर किसी अन्य अस्पताल में ले जाने की सलाह दी गई। उखड़ती सांसों के बीच 59 साल के मरीज को रविवार शाम नाहन के एक निजी अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन कोरोना संक्रमित (Corona infected) की मौत हो चुकी थी। इसके बाद मेडिकल काॅलेज के डैड हाउस (Dead House) में शव को रखा गया।
मृतक के भतीजो ने बताया कि रविवार को यमुनानगर में उनके सामने 16 हजार देने के इलावा कोई विकल्प नहीं। ड्राइवर को अलग से दो सौ रूपये देने को कहा गया था।
बेशक ही परिवार की आर्थिक स्थिति (Financial Condition) कुछ भी हो, लेकिन इस घटना ने एक बार फिर साबित किया है कि धन के लोभ(Greed) में इंसानियत(Humanity) को भुलाया जा रहा है। इस घटना ने कुछ सवाल भी पैदा किए हैं। क्या कोरोना काल में चिकित्सा(Medical) के क्षेत्र (Field) में लूट-खसूट हो रही है। इंसानियत के नाते उस परिवार की मनोस्थिति के बारे में क्यों नहीं सोचा जाता, जिसके मरीज को हायर सैंटर्स में बैड न मिल रहा हो।
बता दें कि इस मामले में एमबीएम न्यूज नेटवर्क के पास हरियाणा के यमुनानगर के दो निजी अस्पतालों का पक्ष उपलब्ध नहीं है। लिखित पक्ष मिलने की सूरत में प्रकाशित किया जा सकता है। मृतक के भतीजों का यह भी कहना था कि अगर परिवार में कोई कोरोना से संक्रमित होता है तो अपने स्तर पर भी सावधानियां बरतें।
उल्लेखनीय है कि सोमवार दोपहर कोरोना संक्रमित के शव का नदी किनारे अंतिम संस्कार कर दिया गया। परिवार ने यह भी सवाल उठाया था कि कहीं जान बूझ कर बैड उपलब्ध न होने की बात तो नहीं कही गई थी। लाजमी तौर पर ऐसे मामलों की जांच के बाद कोई ठोस कार्रवाई की उम्मीद कम ही होती है, वैसे ही मामला इंटरस्टेट हो चुका है।
कुछ माह पहले नौहराधार क्षेत्र में भी एक पिता को अपने 15 साल के बालक के शव को अपने निजी वाहन में लेकर शिमला से आना पड़ा था, जिसका निधन कोरोना से ही हुआ था। निजी अस्पताल ने परिवार को ये तर्क जरूर दिया था कि एम्बुलेंस में वेंटीलेटर की सुविधा है।