नाहन, 02 अक्तूबर : हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) पुलिस के नंबर-1 राइफल शूटर्स (Rifle Shooters) ने जर्मनी से आधुनिक हथियार मंगवाने के लिए अपनी जेब से करीब 20 लाख रूपए की राशि खर्च कर दी है। दोनों पर ही निशानेबाजी का जुनून (Passion) सिर चढक़र बोलता है। बिग बोर (Big Bore) में कोलर के रहने वाले हैड कांस्टेबल (Head Constable) शुभम कुंडलस की राइफल शूटिंग में राज्य पुलिस में एक नंबर की रैंकिंग है, वहीं एएसआई (ASI) नरेश कुमार 0.22 बोर के निशाने में एक नंबर पर हैं। शार्प शूटर्स (Sharp Shooters) की बदौलत ही हिमाचल पुलिस को राष्ट्रीय स्तर (National level) पर भी पदक मिलने में सफलता अर्जित हो चुकी है। कोरोना संकट (Pandemic) की वजह से पुलिस शूूटिंग रेंज (Shooting Range) बंद होने से दोनों अचूक निशानेबाज लंबे अरसे से प्रैक्टिस नहीं कर पा रहे हैं। मगर अब खेल गतिविधियों के लिए एसओपी (SOP) बनने से उम्मीद जगी है।
बता दें कि सिरमौर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समरेश जंग (Samresh Jung) जैसे शूटर को जन्मा है, साथ ही शूटर विजय कुमार (Shooter Vijay Kumar) ने भी ओलम्पिक्स में मैडल जीत कर देवभूमि को गौरवान्वित किया है। शायद ही इस बात को कोई जानता होगा कि पुलिस महकमे में दो शख्स ऐसे भी हैं, जो जुनून को सार्थक करने के लिए अपनी पूंजी खर्च करने में तनिक भी संकोच नहीं करते।
ये है बिग बोर राइफल की खूबी…
अचूक निशानेबाजी की वजह से कांस्टेबल से आउट ऑफ टर्न (Out of turn) हैड कांस्टेबल बने शुभम कुंडलस (28) ने जर्मनी से बिग बोर राइफल मंगवाई है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि 300 मीटर की दूरी तक लक्ष्य को भेदने में माहिर है। केवल निशानेबाज की एकाग्रता (Concentration) होनी चाहिए। इसे जर्मनी से मंगवाना आसान नहीं था। पहले गृह मंत्रालय (Ministry of Home) से एक परमिट (Permit) को हासिल किया गया। अमूमन मंत्रालय द्वारा सामान्य व्यक्ति को परमिट नहींं जारी किया जाता। चूंकि शुभम नेशनल शूटर हैं, लिहाजा परमिट मिल गया। इस वैपन (Weapon) की उम्र 4-5 हजार रौंद दागने की है। लगभग 10 लाख की कीमत वाली इस राइफल को मंगवाने के लिए करीब पौने 2 लाख रूपए कस्टम डयूटी (Custom Duty) की भी अदायगी हुई। हिमाचल में फिलहाल इस तरह का वैपन (Weapon) किसी भी निशानेबाज(Shooter) के पास नहीं है। शुभम को ये वैपन 27 फरवरी को मिल गया था। लेकिन लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से अब तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ है। माता-पिता पुलिस महकमे में ही कार्यरत हैं। शुभम ने राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस शूटिंग प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक हासिल किया है।
ये है 0.22 बोर राइफल…
मूलत: चौपाल के रहने वाले एएसआई नरेश (34) की निशानेबाजी परिचय की मोहताज नहीं है। यह अलग बात है कि आम लोग बेहतरीन शूटर की अचूक निशानेबाजी से वाकिफ न हों। एएसआई नरेश ने भी जर्मनी से 0.22 बोर राइफल को आयात (Import) किया है। इससे वो शूटिंग प्रतियोगिताओं में 30 मीटर की दूरी तक निशाने को भेदने में सफल होंगे। छठी आईआरबी (6th IRB) बटालियन में इस कारण ट्रांसफर ली है, ताकि नाहन के समीप जुड्डा के जोहड स्थित पुलिस शूटिंग (Police Shooting range) रेंज में जमकर प्रैक्टिस कर सकें। इस राइफल को आयात करने के लिए एएसआई नरेश कुमार ने 7 से 8 लाख की राशि खर्च की है। एएसआई नरेश कुमार की हालांकि उपलब्धियां (Achievements) लंबी हैं, लेकिन ऑल इंडिया पुलिस शूटिंग (All India Police Shooting) प्रतियोगिताओं में एक स्वर्ण, दो रजत व दो कांस्य पदक जीत चुके हैं।
आसान नहीं होता परमिट…
विदेशी वैपन को मंगवाने के लिए गृह मंत्रालय (Home Ministry) से परमिट लेना आसान नहीं होता। पहले राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जाता है। इसके बाद नेशनल क्वालीफायर (National Qualifier) बनना पड़ता है। यहां नेशनल क्वालीफायर बनने के लिए एक न्यूनतम स्कोर (Minimum Score) को हासिल करना पड़ता है। गृह मंत्रालय केवल नेशनल क्वालीफायर को ही परमिट देता है।
ये है बातचीत...
28 साल के शुभम ने विशेष बातचीत के दौरान कहा कि निशानेबाजी बचपन (Childhood) का जुनून है। यह बेहद ही खुशी की बात है कि पुलिस में कार्य करने के दौरान शीर्ष अधिकारियों का हर कदम पर सहयोग मिलता है। यही कारण है कि नेशनल पुलिस शूटिंग प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। उधर, 34 वर्षीय एएसआई नरेश कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करने का श्रेय वो अपने शीर्ष अधिकारियों को देना चाहते हैं, जो प्रैक्टिस के लिए हर मुमकिन मदद मुहैया करवाते हैं। उन्होंने कहा कि अब व्यक्तिगत तौर पर जर्मनी से वैपन को आयात किया है। लिहाजा इससे प्रैक्टिस में काफी मदद मिलेगी।
ये भी होगा आपके मन में सवाल…
लाजमी तौर पर आपके जहन में एक सवाल भी उठ रहा होगा। आप सोच रहे होंगे कि इससे पहले जब वैपन नहीं थे तो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे परफोर्म कर रहे थे। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने खंगाला तो पता चला कि शूटर्स को इधर-उधर से जुगाड़ (Make Shift) कर वैपन लेने पड़ते थे। छोटे से पर्वतीय प्रदेश हिमाचल की पुलिस इतनी सक्षम नहीं थी कि अपने स्तर पर इतने महंगे हथियार (Expensive weapon) खरीद पाए।