नाहन 1 अक्टूबर : वीरवार सुबह करीब 8:00 बजे तिरंगे में लिपट 43 वर्षीय शहीद सुरेश ठाकुर (Shaheed Suresh Thakur) चंद मिनटों के लिए घर पहुंचा। जन्म देने वाली मां शीला देवी(66) की आंखों से बेटे को तिरंगे में लिपटा (Wrapped in tricolor) देख लगातार बस आंसू बह रहे थे। पत्नी शीला को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक यह सब कैसे हो गया। 75 साल के पिता जोगिंदर सिंह हालांकि गमगीन थे। लेकिन इस बात पर भी गर्व महसूस कर रहे थे कि उनका बेटा देश के काम आया है।
15 व 12 साल के बेटे विवेक व आर्यन को ठीक से इस बात का भी नहीं पता था कि अब उनके पिता नहीं लौटेंगे। करीब 9:15 बजे के आसपास जब घर से अंतिम यात्रा (last journey) शुरू हुई तो सैकड़ों लोगों की आंखें नम थी। मानो, समूचा धारटीधार शहीद (Martyr) को अश्रुपूर्ण (Tearful) विदाई दे रही हो। बीती रात शहीद की पार्थिव देह (Martyr’s dead body) नाहन पहुंच गई थी। इसके बाद मेडिकल कॉलेज के शव गृह (Mortuary) में रखने की व्यवस्था हुई थी।
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वीरवार सुबह ही पार्थिव देह को पैतृक गांव के लिए रवाना कर दिया गया। धारटीधार के कांडो कत्याड रहने वाले शहीद सुरेश ठाकुर को बचपन से ही देश सेवा का जज्बा था। भाई संजीव कुमार व बाबूराम भी गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। भाइयों की मौजूदगी में किशोर बेटों ने अपने शहीद पिता को मुखाग्नि दी। पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि में राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक (Politicians and Administrative) अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इस मौके पर विधायक डॉ राजीव बिंदल (Dr. Rajeev Bindal) के अलावा उपायुक्त डॉ आरके परुथी (IAS RK Pruthi) व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बबीता राणा इत्यादि के अलावा कई सैन्य व प्रशासनिक अधिकारी भी मौजूद थे। सैनिक वेलफेयर बोर्ड (Soldier Welfare Board) के उपनिदेशक मेजर दीपक धवल सुबह से ही अंत्येष्टि के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुटे हुए थे।
उल्लेखनीय है कि उधमपुर से श्रीनगर (Srinagar) जा रहे सेना के काफिले के एक वाहन के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की वजह से धारटीधार के बेटे हवलदार सुरेश ठाकुर (Havildar Suresh Thakur) का भी निधन हो गया था।