शिमला/सोलन, 28 सितम्बर : कोरोना पॉजिटिव महिला की मौत के बाद उसके नवजात (Infant) बच्चे को नई जिंदगी (New life) देने में प्रदेश के सबसे बड़े संस्थान आईजीएमसी (IGMC) का प्रबंधन जहां वाहवाही बटोर रहा था। वहीं अब इसका दूसरा पहलू भी सामने आया है। बाल कल्याण समिति (Child welfare committee) और बाल संरक्षण इकाई (Child Protection unit) सोलन के स्टाफ ने अपनी जान की परवाह (Care about life) किए बगैर तब तक बच्चे की देखरेख व सेवा की, जब तक कि बच्चा उपचार के बाद पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो गया। नवजात के सिर से मां का साया उठ गया था। वहीं पिता भी कोरोना से ग्रसित था। नवजात का कम वजन और प्री मेच्योर डिलीवरी (Pre Maturity delivery) होने की वजह से उसे बचाना चुनौतीपूर्ण (Challenge) था। अपनी जान की परवाह किए बिना सोलन की चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट की बेटियों ने पीपीई किट (PPE Kit) पहनकर दिन-रात (Day Night) इस नवजात की देखभाल की और इसका असर यह हुआ कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ (Healthy) हुआ।
चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट (Child Protection unit) में आउटसोर्स आधार (Outsource employees) पर कार्यरत बेटियों का यह जज्बा कोरोनो योद्धाओं (Corona warriors) के लिए बड़ी मिसाल है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) की चेयरपर्सन विजय लांबा की सूझबूझ (Sense) और मार्गदर्शन से यह मुमकिन (Possible) हो पाया है। इससे पहले आईजीएमसी के डॉक्टरों ने बच्चे को डिस्चार्ज (Discharge) करते वक्त प्रैस कांफ्रेस कर दावा किया था कि उनकी मेहनत (Efforts) की बदौलत बच्चा ठीक हुआ है। जबकि सीडब्लयूसी सोलन की चेपरपर्सन (Chairperson) विजय लांबा इससे इत्तफ़ाक़ नहीं रखती हैं। वह कहती हैं कि बेशक आईजीएमसी (IGMC) में बच्चे का उपचार चला और बच्चा पूर्ण स्वस्थ भी हुआ, लेकिन सीडब्लयूसी व चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट सोलन के स्टाफ के बगैर यह संभव नहीं था।
चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट की चार अविवाहित (Unmarried) व यंग महिला कर्मचारियों (employees) ने बच्चे की देखभाल कर आईजीएमसी में कई दिन व रातें गुुजारी। चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट में कार्यरत 24 से 26 साल की इन महिला कर्मियों ने पीपीई किट पहनकर (Wearing PPE Kit) बच्चे की देखभाल की है। अपने घरों से दूर इन्होंने कई दिन पीपीई किट में बच्चे के साथ गुजारे और इनके पैरों में छाले तक पड़ गए। आईजीएमसी में बीमार नवजात बच्चे (Infant) की देखरेख पर भेजने से पहले इन बेटियों के कोविड टैस्ट (Covid test) लिए गए और नैगेटिव रिपोर्ट आने पर ही इन्हें वहां भेजा गया।
विजय लांबा को इस बात का मलाल है कि नवजात बच्चे के इलाज के दौरान आईजीएमसी प्रबंधन का रवैया नकारात्मक (Callous attitude) रहा। आईजीएमसी प्रबंधन (Management) बच्चे की देखभाल के लिए नर्स व मिड वाइफ तैनात करने के लिए भी तैयार नहीं हुआ। आईजीएमसी प्रबंधन ने स्पष्ट कर दिया कि उनके प्रतिष्ठित संस्थान में बच्चे की देखभाल के लिए न तो नर्स और न ही मिड वाइफ उपलब्ध है। इन हालातों (Circumstances) में सीडल्यूसी के स्टाफ ने बच्चे को जिंदगी देने की ठानी और बदल-बदल कर महिला कर्मी आईजीएमसी भेजे गए।
विजय लांबा कहती हैं कि आईजीएमसी प्रबंधन यह भी भूल गया कि उपचार (Treatment) के दौरान बच्चे की देखरेख के लिए पेशेवर नर्सों व मिड वाइफ (Mid Wife) की जरूरत होती है तथा यह उनकी नैतिक जिम्मेवारी (Moral responsibility) भी बनती थी। उन्होंने कहा कि नवजात 9 सितम्बर को पैदा हुआ और उसके बाद मां की मौत हो गई। बच्चा अंडर वेट (Under weight infant) था और प्रीमेच्यूर डिलीवरी थी। उसे आईजीएमसी में उपकरणों के अंदर रखना अनिवार्य था। बच्चे के कोरोना पॉजिटिव पिता की सहमति मिलने के बाद सोलन से रात साढ़े 3 बजे चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट की प्रोटेक्शन ऑफिसर (Child protection officer) सपना चैहान पीओ और आउटरीच वर्कर किरण बाला के कोविड टेस्ट लिए गए और नैगेटिव रिपोर्ट आने पर वे दोनों बच्चे को साथ लेकर आईजीएमसी रवाना हुई।
इन दोनों ने कई दिन पीपीई किट पहनकर न केवल बच्चे की देखभाल की, बल्कि अपनी जेब से तमाम खर्चा भी किया। इसके बाद दूसरी प्रोटेक्शन आफिसर सुमन और सोशल वर्कर उर्मिल को बच्चे की देखभाल के लिए भेजा गया। जबकि आईजीएमसी प्रबंधन का रवैया ठीक नहीं रहा। हमारे बार-बार अनुरोध के बावजूद आईजीएमसी प्रबंधन ने बच्चे के देखभाल के लिए नर्स की डयूटी (Nurse duty) लगाने से मना कर दिया तथा वे बच्चे को डिस्चार्ज कर सोलन क्षेत्रीय अस्पताल शिफ्ट करने की बात करने लगे। यह जानते हुए भी कि सोलन अस्पताल में आईजीएमसी की तर्ज पर सुविधाएं नहीं हैं। विजय लांबा ने कहा कि बच्चे के स्वस्थ होने में सीडब्यलूसी सोलन ने अहम रोल अदा किया है तथा असल में बाल संरक्षण इकाई का महिला स्टाफ कोरोना वॉरियर है।
आईजीमसी में पीपीई किट पहनकर बच्चे की देखभाल के दौरान उनके पैर तक सूज (Swollen) गए थे। बच्चे की देखभाल करने वाली महिला कर्मी यंग व अविवाहित हैं और उन्हें बच्चों की देखभाल (Look after) का अनुभव (Experience) भी नहीं था। उन्होंने कहा कि जब तक बच्चा ठीक नहीं हो गया, तब तक उनका स्टाफ आईजीएमसी में डटा रहा और बच्चे को डिस्चार्ज करने के बाद आईजीएमसी से वापिस लाया। उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में आईजीएमसी के स्टाफ का व्यवहार क्षुब्ध (disappoint) करने वाला रहा।