रिकांगपिओ (जेएस नेगी) : भारत में केवल कश्मीर के छोटे से भाग व जिला किन्नौर के सीमित क्षेत्र में पाया जाने वाला बेशकीमती चिलगोजा जो वर्षो से आय का साधन बना है, की कीमत दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। सीमित क्षेत्र में होने के बावजूद इस की दाम में कोई इजाफा नहीं हो रहा, जबकि सेब की पैदावार में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी होने के साथ इसके दाम में भी इजाफा होता रहा है। इसका एक कमी सरकार की चिलगोजा के प्रति ठोस नीति नहीं होना भी माना जा रहा है।
दूसरी और लोगों का कहना है कि जिस तरह सेब की मांग देश के बड़े शहरों में होती है, वहीं चिलगोचा की मांग तो है मगर बाहरी राज्यों से कोई बडी आढ़ती चिलगोजा लेने जिला में नहीं आते।प्रदेश में चिलगोचा केवल किन्नौर में ही पाया जाता है, कुछ एक-दूसरे जिलों से रिकांगपिओ में चिलगोजा खरीदने आते तो हैं, लेकिन लोगों को उनका उचित दाम नहीं मिल रहा है। लोगों का कहना है कि देश मं भी चिलगोचा की खरीद केवल दिल्ली में दो आढ़ती करते हैं।
आढ़तियों कीे मनमानी के चलते भी इस के दाम में कोई इजाफा नहीं हो रहा है। जिस कारण जिला के लोगों का चिलगोजे के प्रति रूझान कम होता जा रहा है। समय रहते इस पर कोई ठोस नीति नही अपनाई गई तो वह दिन दूर नहीं, जब बड़ी हस्तियों व नेताओं की प्लेट में चिलगोजा जैसा ड्राई फ्रूडस नदारद होगा। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व के वर्षो में सेब से पहले इसी चिलगोजा की लोगों का अजीविका का साधन था, लेकिन धीरे-धीरे अब इस के दाम में गिरावट से लोगों का इसके प्रति मोह भंग होता जा रहा है।
जिला में पहली दफा इस वर्ष चिलगोजा का दाम मूंगफली के बराबर हुआ है। आज जिला में मात्र ढाई सौ प्रतिकि लो बिक रहा है। जो लोगों के कडी मेहनत के समक्ष कुछ नही है। लोगो का कहना हे कि जगंल में पेड़ से गिराने, घरला कर फली को निकालने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बावजूद इसके दाम में इजाफा नहीं हो रहा है। लोगों का कहना है कि सरकार व प्रशासन इस पर हस्तक्षेप कर कुछ नीति बनाने की जरूरत है। गौर रहे कि चिलगोजा का वृक्ष इतना दीर्घायु है कि देवदार से भी लंबे समय तक शुष्क मौसम में भी जीवित रहता है।
चिलगोजा का पेड़ मध्यम से विशाल आकार का होता है। टहनियां बहुत लंबी एवं मोटी होती हैं। इसे नीचे से ऊपर की ओर एक-दूसरे से सटी परतों के मध्य दो-दो श्रेणी मे गिरी होती है, जो पतले छिलके में होते हैं। अत्यंत विशेष है कि यह फल 18 महीने में पककर तैयार होता है। अगले वर्ष का फल इसी वर्ष के बैसाख में लग जाता है और अगले बैसाख के बाद अक्टूबर के अंत तक पककर तैयार हो जाता है। अपने आय का साधन के साथ साथ किन्नौर में विशेष समारोह व शादी ब्याह में चिलगोजा की माला पहनाई जाती है।