नाहन : विधायक डाॅ. राजीव बिंदल (Dr. Rajeev Bindal)अब सीधे-सीधे माकपा विधायक राकेश सिंघा (Rakesh Singha) के निशाने पर हैं। सोलन नगर परिषद के अध्यक्ष पद से 1998 में राजनीति शुरू करने वाले डाॅ. राजीव उसी समय भर्तियों को लेकर विवादों (Controversy) में आ गए थे। हालांकि जैसे-तैसे इस मसले से अपना पीछा छुड़वा लिया, मगर अब विधानसभा की भर्तियों (Assembly Recruitments) को लेकर फिर चर्चा में हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चाओं के मुताबिक विवादों से डाॅ. बिंदल का चोली-दामन का साथ है। जयराम सरकार में पहले मंत्री पद पर तवज्जों नहीं मिली। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष बना दिए गए।
बता दें कि विधानसभा के अध्यक्ष पद पर डाॅ. राजीव बिंदल 10 जनवरी 2018 से 16 जनवरी 2020 तक काबिज रहे। डाॅ. राजीव बिंदल को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कमान दे दी गई। उम्मीद की जा रही थी कि तेजतर्रारी की वजह से मिशन रिपीट को सफल कर दिखाएंगे। मगर स्वास्थ्य विभाग के निदेशालय में कथित भ्रष्टाचार के वायरल ऑडियो प्रकरण में डाॅ. बिंदल को महज सवा चार महीने में ही ये ओहदा भी छोड़ना पड़ा। यानि तीन बार बड़े ओहदों से त्यागपत्र दे चुके हैं। अब विधानसभा स्पीकर (Vidhan Sabha Speaker) रहने के दौरान की गई नियुक्तियों पर सवाल उठे हैं। हालांकि इस समय केवल विधायक ही हैं, तो यह तो तय है कि विधायक के पद से तो इस्तीफा नहीं देंगे। अलबत्ता इतना जरूर है कि उन अटकलों पर विराम लग सकता है, जिसमें बार-बार यही कहा जा रहा था कि डाॅ. बिंदल को पार्टी या तो वापस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप देगी या फिर मंत्रिमंडल के ओहदे से नवाजे जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि माकपा विधायक राकेश सिंघा (CPI(M) MLA Rakesh Singha) ने बिंदल ने कार्यकाल के दौरान एक-एक भर्ती को गहराई से नापने के बाद ही अपनी बात वीरवार को मीडिया(Media) के सामने रखी थी। बहरहाल, यह भी शायद प्रदेश की राजनीति में पहली बार ही हुआ होगा, जब सत्ता में काबिज सरकार ने पहले एक विधायक को स्पीकर बनाया। दो साल के भीतर इस्तीफा हुआ, इसके बाद पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपी गई। लेकिन यहां से भी सवा चार महीने में पार्टी अध्यक्ष ने ऑडियो प्रकरण में नैतिक जिम्मेदारी का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। यही नहीं, सरकार इस इस्तीफे के बाद बगैर पार्टी अध्यक्ष व तीन मंत्रियों के ही चलाई जा रही है।
ऐसे बने थे पहली बार विधायक…
दरअसल, 2000 में सोलन विधानसभा का उप चुनाव हुआ था। यहां कांग्रेस की विजय प्रत्याशी दिवंगत मेजर कृष्णा मोहिनी के चुनाव को पार्टी नेता महेंद्र सिंह सोफत ने अदालत में चुनौती दी थी। फैसला सोफत के पक्ष में आया। बीजेपी ने उन्हें टिकट न देकर डाॅ. राजीव बिंदल को टिकट दिया। यहीं से पहली बार डाॅ. बिंदल ने विधानसभा की पहली सीढ़ी चढ़ी। इससे पहले 1995 से 2000 तक सोलन नगर परिषद के अध्यक्ष रहे। यही नहीं, पहली बार विधायक बनते ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Pollution Control Board) के चेयरमैन भी बने। 20 साल से विधानसभा का चुनाव नहीं हारा। धूमल सरकार के वक्त स्वास्थ्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। उस समय भी बिंदल ने नैतिकता का ही हवाला दिया था।
ये हैं विधानसभा में सबसे अल्प अवधि वाले स्पीकर…
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में राधा रमण शास्त्री सबसे कम अवधि के स्पीकर रहे हैं। शास्त्री का कार्यकाल मात्र 5 महीने के आसपास रहा। बतौर विधानसभा अध्यक्ष दूसरा सबसे कम समय श्रवण कुमार का रहा, जिन्होंने दो साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं किया। 30 जून 1977 से 18 अप्रैल 1979 तक कार्य किया। इसके बाद डाॅ. राजीव बिंदल दो साल 5 दिन वाले विधानसभा अध्यक्ष रहे। डाॅ. बिंदल का कार्यकाल 10 जनवरी 2018 से शुरू हुआ, जिसकी समाप्ति इस्तीफे के बाद 16 जनवरी 2020 को पूरी हुई। टीएस नेगी ने 8 मई 1979 से 21 जून 1982 तक कार्य करने के बाद 22 जून 1982 को भी ओहदा संभाल लिया था, लेकिन दूसरी पारी 14 सितंबर 1984 तक चली।
कह चुके हैं बिंदल…
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. राजीव बिंदल इस बात को कह चुके हैं कि विधानसभा की भर्तियों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। इसमें न तो कोई उनका रिश्तेदार है और न ही कोई सगा संबंधी। सिंघा का बयान सरासर गलत है।