नाहन : राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। कब कोई पद से रुखसत हो जाए और किसे रातोंरात नया ओहदा मिल जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। चंद सप्ताह पहले तक शायद ही किसी ने सोचा होगा कि महज सवा चार महीने के कार्यकाल के भीतर ही विधायक डाॅ. राजीव बिंदल को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। जयराम सरकार के सत्ता में काबिज होते ही बिंदल की विधानसभा अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी हुई। ऐेसे में मंत्रिमंडल पद के दावेदार सुखराम चौधरी का दावा इसलिए भी नकारा जाता रहा, क्योंकि एक जिला से दो अहम ओहदे देने की स्थिति में सरकार नहीं थी।
हालांकि, इस वक्त सरकार ने बलदेव तोमर व बलदेव भंडारी को ओहदे दिए हुए हैं, लेकिन इस बात से कतई भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सुखराम चौधरी इस समय मंत्रिमंडल की दौड़ में शामिल हैं। दावा इस कारण मजबूत हो गया है कि सिरमौर का प्रतिनिधित्व नहीं है। राज्य में तीन मंत्रियों की तलाश के अलावा संगठन के सुप्रीमों की भी सर्च चल रही है। जनवरी में भी सुखराम चौधरी का नाम चर्चा में आया था। मगर मंत्रिमंडल का विस्तार टलता रहा। लाजमी तौर पर तीन बार विधायक बन चुके सुखराम चौधरी एक मर्तबा मुख्य संसदीय सचिव भी रह चुके हैं।
यह भी निश्चित माना जा रहा है कि अगर धूमल कोटे से किसी को जगह मिली तो इसमें चौधरी की लाॅटरी खुल सकती है। केंद्र में सांसद अनुराग ठाकुर का रुतबा भी बढ़ा है। इस प्रश्न का भी जवाब तलाशा जा रहा है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की भी मंत्रियों के नामों को लेकर सहमति ली जाएगी या नहीं। अलबत्ता, इतना जरूर है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीब पहुंचने में अनुराग कामयाब रहे हैं। राजनीति की अस्थिरता कब, क्या करवट लेगी, इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है, क्योंकि जनवरी माह में राकेश पठानिया के अलावा बिंदल का नाम भी उभरा था। इसके साथ ही नरेंद्र ठाकुर भी चर्चा में आए थे।
कुल मिलाकर निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सिरमौर के हिस्से मंत्री का पद आएगा या नहीं। करीब 25 साल के इतिहास की बात करें तो पच्छाद से गंगूराम के अलावा कोई कैबिनेट मंत्री सिरमौर से नहीं बना है। श्यामा शर्मा एक मर्तबा राज्य मंत्री रही हैं।