सोलन : शख्सियत में काबलियत हो तो फिर व्यक्ति गांव का हो या शहर का, इससे फर्क नहीं पड़ता। हिमाचल के सोलन जनपद के अर्की उपमंडल के गांव तनसेटा के रहने वाले सुरेन्द्र कुमार पाल ने यह सत्य कर दिखाया, छोटे से गांव से निकलकर विदेशों में भी शोधों से परचम लहराया। डॉ सुरेन्द्र कुमार पाल आज परिचय के मोहताज नहीं हैं। बता दें कि आजकल ड़ॉ० पाल सहायक निदेशक एवं मीडिया अधिकारी, क्षेत्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला उत्तरी रेंज, धर्मशाला में तैनात हैं। हिमाचल प्रदेश फॉरेंसिक विज्ञान अधिकारी संगठन के प्रदेशाध्यक्ष की कमान भी सम्भाले हैं, 10 सालों के फ़ॉरेसिंक विशेषज्ञ के तौर पर भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों अपने शोध कार्यों जैसे बलात्कार, हत्या ,पानी में ड़ुबने से होने वाली मौतें, आत्महत्या इत्यादि के इलावा दहला देने वाले मामलों की रहस्यों को सुलझा चुके हैं। उनके अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया,सिंगापुर, चीन, फ्राँस, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड जैसे देशों में अपने शोध कार्य प्रदर्शित कर चुके हैं। डॉ. पाल ने पीजीआई में मिर्गी के रोग पर गहन रिसर्च की और इस खोज से विदेशों में भी अपनी रिसर्च का लोहा मनवाया। डॉ. पाल ने मिर्गी के रोगियों के लिए कई सार्थक इलाज बताए। 2006 में अमेरिका में यंग इन्वेस्टिगेटर अवार्ड पाने वाले पहले भारतीय बने।
जीवन के शुरुआती क्षणों में कठिनाईयां उठानी पड़ीं। पर अव्वल रहने की जिद्द से डॉ सुरेन्द्र कुमार पाल ने संघर्ष के क्षणों को भी हंसते- हंसते झेला और आगे बढ़े। डॉ पाल की शुरुआती शिक्षा राजकीय प्राथमिक पाठशाला जोबडी तथा 10वीं तक राजकीय उच्च स्कूल बलेरा से हुई।
ड़ॉ पाल ने 2019 में एशियन फॉरेंसिक साइंस नेटवर्क द्वारा वियतनाम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पानी में डूबने या किसी ने हत्या करके शव को पानी में फैंका है,
इसकी जांच हेतू ड़ॉ पाल ने एक नई तकनीक का अविष्कार किया जिसके उपयोग से दो से तीन घण्टे में फॉरेंसिक रिपोर्ट उपलब्ध करवाई जा सकती है। आज तक ये टैक्नीक ड़ॉ पाल के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश के तीनों फॉरेंसिक लैब में उपयोग में लाई जा रही है। फॉरेंसिक जीव विज्ञान और जटिल अपराधिक मामलों की जांच कर अनेकों गुत्थियां सुलझाने एवं महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य के हेतू न्यायिक विज्ञान और अपराधिक जांच विभाग,लीगल डिजायर मीडिया नई दिल्ली द्वारा ”श्रेष्ठ न्यायिक विज्ञान विशेषज्ञ पुरस्कार से अलंकृत किया गया।
ड़ॉ सुरेंद्र कुमार पाल सूबे में दूरदराज के लोगों को सस्ता इलाज देने के लिए रिहेबिलिटेशन सेंटर खोलने की हसरत मन में पाले हुए हैं। ताकि अपने दुर्गम क्षेत्र के लोगों का इलाज हेतू सही ढ़ग से मार्गदर्शन किया जा सके। लोगों को इधर-उधर न भटकना पड़े। जिन स्कूलों से उन्होंने अपनी पढ़ाई का सफर शुरु किया था , वहां ही नहीं पर जिला के अनेकों स्कूलों में उन्हे कार्यक्रमों में मुख्यतीथि के तौर पर बच्चों के मार्गदर्शन के लिए बुलाया जाता है।
ड़ॉ पाल ने हिमाचल के हितों की हमेशा पैरवी की। पंजाब विवि में पहाड़ी भाषा का कैंपस रिपोर्टर में जगह और मैगजीन के संपादक रहे। पहाड़ी भाषा को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान दिलाने में योगदान दिया।
ड़ॉ पाल ने बातचीत में बताया कि इस पुरस्कार के लिए वह ड़ॉ अरूण शर्मा, निदेशक फॉरेंसिक निदेशालय हिमाचल प्रदेश के आभारी है, जिन्होने इस कार्य के लिए प्रेरित किया और समय-समय पर मार्गदर्शन भी किया। साथ ही इस कार्य में लगी अपनी आरएफएसएल टीम का भी धन्यवाद किया।