शिमला: क्या राज्य में अब भी कोरोना की सैंपलिंग को लेकर कोई ठोस प्लानिंग नहीं हो पाई है। यह सवाल हमीरपुर में हैरतअंगेज खुलासे के बाद हर किसी के जहन में उठ रहा है।
बेशक ही प्रशासनिक व विभागीय स्तर पर बड़ी चूक हुई है, लेकिन कहीं न कहीं यह भी सवाल उठ रहा है कि नमूनों की रिपोर्ट को लेकर एक रणनीति बनती। मसलन, क्यों जांच कर रही प्रयोगशालाओं से ही सीधी रिपोर्ट ऑनलाइन ली जाती, जो एक क्लिक पर तमाम ज़िलाधीशों व पुलिस अधीक्षकों के अलावा मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के पास पहुंचती। इसके लिए ओटीपी की व्यवस्था लागू की जा सकती थी। बेशक ही हमीरपुर के स्वास्थ्य विभाग को कन्फ्यूज महकमा करार दिया जा रहा हो, लेकिन कहीं न कहीं शंका इस बात की है कि सरकार भी कन्फ्यूज है।
कोरोना के शुरूआती चरण में ही उस समय संकेत मिल गए थे, जब अधिकारियों के समन्वय की कमी से मीडिया के एक वर्ग ने आईजीएमसी से 7 की रिपोर्ट पाॅजिटिव आने की बात लिखी थी, जबकि एक वर्ग ने इसे 11 रिपोर्ट किया था। अपनी फजीहत से बचने के लिए 11 की रिपोर्ट को पाॅजिटिव बताने वाले मीडिया के वर्ग को फेक रिपोर्टिंग बताना शुरू कर दिया गया था।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि सरकार ने कई तरह के एप्प व पोर्टल लाॅन्च कर दिए हैं, मगर अभी तक सैंपल की रिपोर्टस को लेकर कोई ऐसा मैकेनिज्म नहीं है, जिससे कन्फ्यूजन पैदा न हो। अब हमीरपुर प्रकरण को हल्के से नहीं लिया जा सकता। सरकार को कर्फ्यू ढील के साथ-साथ इस बात का भी मंथन करना होगा कि एक मामूली सी चूक पूरे किए कराए पर पानी फेर देगी। आपको बता दें कि बीती रात हमीरपुर में 15 लोगों की रिपोर्ट पाॅजिटिव आई। हैरानी की बात यह थी कि इनमें से कोई भी क्वारंटाइन सैंटर में नहीं था, बल्कि अपने-अपने घरों में क्वारंटाइन सैंटर से लौटने के बाद काफी समय बिता चुके थे।
माना यह भी जा रहा है कि हमीरपुर में ई-पास जारी करने में भी काफी नरमी दिखाई गई। उधर एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया, लेकिन काॅल रिसीव नहीं हुई।